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द्वितीय प्रकाश
चाहिए और 'भूमि' शब्द से वृक्ष आदि भूमि से पैदा होने वाले सब पद द्रव्यों का ग्रहण करना चाहिए ।
इस स्पष्टीकरण का तात्पर्य यह हुआ कि किसी भी द्विपद के विषय में मिथ्या भाषण करना 'कन्यालीक', किसी भी चतुष्पद के विषय में मिथ्या भाषण करना 'गो अलीक' और किसी भी प्रपद के विषय में सत्य बोलना 'भूमि- अलीक' कहलाता है ।
प्रश्न - ऐसा अर्थ है तो कन्या, गो और भूमि के बदले क्रमशः द्विपद, चतुष्पद एवं पद शब्दों का ही व्यवहार क्यों नहीं किया गया ?
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उत्तर - लोक में कन्या, गाय और भूमि के सम्बन्ध में झूठ बोलना अत्यन्त निन्दनीय समझा जाता है । इसलिए लोक- प्रसिद्धि के अनुसार 'कन्या' आदि शब्दों का प्रयोग किया गया है । फिर भी इन शब्दों का व्यापक अर्थ ही लेना चाहिए ।
सर्वलोकविरुद्धं यद्यद्विश्वसितघातकम् ।
यद्विपक्षश्च पुण्यस्य, न वदेत्तदसूनृतम् ।। ५५ ।।
कन्यालीक, गो-अलीक और भूमि श्रलीक - लोक से विरुद्ध हैं । न्यासापहार — विश्वासघात का जनक है और कूटसाक्षी - पुण्य का नाश करने वाली है । श्रतः श्रावक को स्थूलमृषावाद नहीं बोलना चाहिए । प्रसत्य का परित्याग
असत्यतो लघीयस्त्वमसत्याद्वचनीयता । अधोगतिरसत्याच्च, तदसत्यं परिवर्जयेत् ॥ ५ ॥
असत्यवचनं प्राज्ञः, प्रमादेनापि नो वदेत् । श्रेयांसि येन भज्यन्ते, वात्ययेव महाद्रुमाः ।। ५७ ।। असंत्यवचनाद् वैरविषादाप्रत्ययादयः । प्रादुःषन्ति न के दोषाः, कुपथ्याद् व्याधयो यथा ॥ ५८ ॥
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