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द्वितीय प्रकाश
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अहिंसा माता के समान समस्त प्राणियों का हित' करने वाली है। अहिंसा संसार रूपी मरुस्थल में अमृत की नहर है। अहिंसा दुःख रूपी दावानल को विनष्ट करने के लिए वर्षाकालीन मेघों की घनघोर घटा है। अहिंसा भव-भ्रमण रूपी रोग से पीड़ित जनों के लिए उत्तम प्रौषध है।
टिप्पण-हिंसा विष और अहिंसा अमृत है । हिंसा मृत्यु और अहिंसा जीवन है। अहिंसा के आधार पर ही जगत् का टिकाव है। अहिंसा का अभाव जगत् में महाप्रलय उपस्थित कर सकता है । संसार में जो थोड़ा-बहुत सुख और शान्ति है, तो वह अहिंसा माता का ही प्रभाव है । अहिंसा ही सुख-शान्ति का मूल है । अहिंसावत का फल
दीर्घमायुः परं रूपमारोग्यं श्लाघनीयता।
अहिंसायाः फलं सर्व, किमन्यत्कामदैव सा ।। ५२ ॥ दीर्घ प्रायु, श्रेष्ठ रूप, नीरोगता एवं प्रशंसनीयता-यह सब अहिंसा के ही फल हैं। वस्तुतः अहिंसा सभी मनोरथों को सिद्ध करने वाली कामधेनु है।
टिप्पण-मनुष्य अन्य प्राणियों की आयु का विनाश न करने के कारण इस जन्म में दीर्घ आयु पाता है, दूसरे के रूप को नष्ट न करने के फलस्वरूप प्रशस्त रूप प्राप्त करता है, अन्य को अस्वस्थता उत्पन्न न करने से नीरोगता पाता है और अभयदान देने के कारण प्रशंसा का पात्र बनता है। दुनिया में कोई ऐसा मनोरथ नहीं है, जो अहिंसा के
द्वारा पूर्ण न हो सके ! . . प्रसत्य का फल
मन्मनत्वं काहलत्वं, मूकत्वं मुखरोगिताम्। वीक्ष्यासत्यफलं कन्यालीकाद्यसत्यमुत्सृजेत् ।। ५३ ।।
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