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द्वितीय प्रकाश
श्रावक के बारह व्रत सम्यक्त्वमूलानि पञ्चाणुव्रतानि गुणास्त्रयः ।
शिक्षापदानि चत्वारि, व्रतानि गृहमेधिनाम् ।। १॥ - पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत--यह गृहस्थों के बारह व्रत हैं। यह व्रत सम्यक्त्व-मूलक होने चाहिए । सम्यक्त्व की प्राप्ति होने पर ही गृहस्थ का चारित्र सम्यक्-चारित्र कहलाता है।
टिप्पण-सम्यक्त्व के अभाव में किया जाने वाला समस्त आचरण मिथ्या-चारित्र कहलाता है। मिथ्या-चारित्र से मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती। वह संसार-भ्रमण का ही कारण होता है। सम्यक्त्व से दृष्टि निर्मल और सम बनती है। जब सम्यक्त्व नहीं होता है, तो लक्ष्य ही सही नहीं होता और उस दशा में किया गया कठोर से कठोर अनुष्ठान भी यथेष्ट लाभदायक नहीं होता।
सम्यग्दर्शन मोक्षमार्ग की पहली सीढ़ी है। उसके प्रभाव में न सम्यग्ज्ञान होता है और न सम्यक्-चारित्र ही हो सकता है। सम्यकत्व का स्वरूप
या देवे देवता - बुद्धिगुरौ च गुरुतामतिः । धर्मे च धर्मधीः शुद्धा, सम्यक्त्वमिदमुच्यते ।। २ ।।
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