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द्वितीय प्रकाश ___ इन पूर्वोक्त प्रयोजनों के लिए पशुओं की हिंसा करने वाला, वेद के मर्म का ज्ञाता द्विज ब्राह्मण अपने आपको और उन मारे जाने वाले पशुओं को उत्तम गराि में ले जाता है। ऐसा मनु का कथन है। नास्तिक से अधम
ये चक्रुः क्रूरकर्माणः शास्त्रं हिंसोपदेशकम् ।
क्व तेयास्यन्ति नरके, नास्तिकेभ्योऽपि नास्तिकाः ॥३७।। ___ जिन क्रूरकर्मा ऋषियों ने हिंसा का उपदेश करने वाले ग्रन्थ बनाये हैं, वे नास्तिकों से भी नास्तिक हैं और ये अधम लोग न जाने किस नरक में जाएँगे ?
वरं वराकश्चार्वाको, योऽसौ प्रकट-नास्तिकः ।
वेदोक्तितापसच्छाच्छन्न, रक्षो न जैमिनिः ।। ३८ ॥ इनसे चार्वाक ही अच्छा है, जो प्रकट रूप से नास्तिक है । वह जैसा है, वैसा ही अपने को प्रकट भी करता है। किसी को धोखा नहीं देता। किन्तु वेद की वाणी और तापसों के वेष में अपनी वास्तविकता को छिपाने वाला जैमिनि चार्वाक से भी ज्यादा खतरनाक है ! यह तो वेद के नाम पर हिंसा का विधान करके भोले लोगों को भ्रम में डालता है।
देवोपहारव्याजेन, यज्ञव्याजेन येऽथवा।
घ्नन्ति जन्तून् गत-घृणा,घोरां ते यान्ति दुर्गतिम् ।।३६॥ भैरों-भवानी आदि देवों को बलि चढ़ाने के बहाने से अथवा यज्ञ के बहाने से, जो निर्दय लोग प्राणियों की हिंसा करते हैं, वे नरक आदि घोर दुर्गतियों को प्राप्त होते हैं।
- टिप्पण:-देव-पूजा के लिए या यज्ञ के लिए जीव हिंसा की . . आवश्यकता नहीं है। यह कार्य तो दूसरे प्रकार से भी हो सकते हैं।
फिर भी जो इनको उद्देश्य करके त्रस जीवों की हिंसा करते हैं, वे देव-पूजा और यज्ञ का बहाना मात्र करते हैं । वस्तुतः वे अपनी
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