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योग-शास्त्र
मोह के द्योतक हैं। जो व्यक्ति इन दोषों के द्योतक चिह्नों को धारण करते हैं, वे राग-द्वेष और मोह से युक्त हैं। इसके अतिरिक्त किसी का वध-बन्धन आदि निग्रह करना और किसी पर वरदान प्रादि देकर अनुग्रह करना भी राग-द्वेष का परिचायक है। इस प्रकार जिसमें यह सब दोष विद्यमान हैं, वह वास्तविक देव नहीं है। उसकी उपासना से मुक्ति नहीं मिल सकती। गुरु का लक्षण
महाव्रतधरा धीरा भैक्षमात्रोपजीविनः ।
सामायिकस्था धर्मोपदेशका गुरवो मताः ॥ ८ ॥ अहिंसा आदि पूर्वोक्त पाँच महाव्रतों को धारण करने वाले, परीषह और उपसर्ग पाने पर भी व्याकुल न होने वाले, भिक्षा से ही उदर निर्वाह करने वाले, सदैव सामायिक-समभाव में रहने वाले और धर्म का उपदेश देने वाले 'गुरु' कहलाते हैं।
टिप्पण-महाव्रतों का पालन, धैर्य, भिक्षाजीवी होना और सामायिक में रहना-साधु मात्र का लक्षण है । यह लक्षण प्रत्येक मुनि में होता है, किन्तु 'धर्मोपदेशकता' गुरु का विशेष लक्षण है। साधु के गुणों से युक्त होते हुए जो धर्मोपदेशक होते हैं, वह गुरु कहलाते हैं। कुगुरु का लक्षण
सर्वाभिलाषिणः सर्वभोजिनः सपरिग्रहाः ।। अब्रह्मचारिणो मिथ्योपदेशा गुरवो न तु ॥ ६ ॥ परिग्रहारम्भमग्नास्तारयेयुः कथं परान् ?
स्वयं दरिद्रो न परमीश्वरीकर्तु मीश्वरः ॥ १० ॥ अपने भक्तों के धन-धान्य आदि सभी पदार्थों की अभिलाषा रखने वाले, मद्य, मधु, मांस आदि सभी वस्तुओं का आहार करने वाले,
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