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योग-शास्त्र
प्राप्ति नहीं हई थी, जो सब प्रकार के सांसारिक सुखों में मग्न थीं, उन मरुदेवी (भगवान् आदि नाथ की माता) को योग के प्रभाव से परम पद की प्राप्ति हुई। ब्रह्महत्या, स्त्रीहत्या, भ्रूणहत्या (गर्भपात) और गोहत्या जैसे लोक-प्रसिद्ध उग्र पापों का आचरण करने के कारण नरक के अतिथि बने हुए दृढ़प्रहारि आदि के लिए योग ही प्राश्रयभूत है। तत्काल स्त्री-वध जैसा पापकर्म करने वाले घोरकर्मी दुरात्मा चिलाती पुत्र की भी दुर्गति से रक्षा करने वाले योग की साधना कौन नहीं करना चाहेगा?
तस्याजबनिरेवास्तू, न-पशोर्मोषजन्मनः ।
अविद्धकर्णी यो योग इत्यक्षरशलाकया ॥ १४ ॥ 'यो-ग' इन अक्षरों की सलाई से जिसके कान नहीं बिंधे हैं या 'योग' शब्द जिसके कानों में नहीं पड़ा है, जिसने योग का स्वरूप नहीं सुना-समझा है, वह मनुष्य होता हुआ भी पशु के समान है । उसका जन्म व्यर्थ है। उसका जन्म न होना ही अच्छा था। योग का स्वरूप
चतुर्वर्गेऽग्रणी मोक्षो, योगस्तस्य च कारणम् ।
ज्ञान-श्रद्धान-चारित्ररूपं, रत्नत्रयं च सः ।। १५ ।। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष-यह चार पुरुषार्थ हैं । इन चारों में मोक्ष पुरुषार्थ मुख्य है। मोक्ष का जो कारण हो, वही योग कहलाता है । इस व्याख्या के अनुसार सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यक चारित्र रूप 'रत्नत्रय' ही योग है। सम्यग्ज्ञान का स्वरूप ... यथावस्थिततत्त्वानां, संक्षेपाद्विस्तरेण च। .
योऽवबोधस्तमत्राहुः, सम्यग्ज्ञानं मनीषिणः ॥ १६ ॥ जीव, अजीव, प्रास्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष यह सात
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