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योग-शास्त्र प्रकार की व्याख्याएँ दी हैं। इन दोनों व्याख्याओं से चारित्र का स्वरूप पूर्णतः और सरलता से समझा जा सकता है। ___ समिति-गुप्ति का लक्षण सूत्रकार स्वयं ही आगे के पद्यों में बतलाएँगे। समिति-गुप्ति
ईर्या-भाषेषणादान-निक्षेपोत्सर्ग-संज्ञिकाः ।
पञ्चाहुः समितीस्तिस्रो, गुप्तीस्त्रियोगनिग्रहात् ॥३५॥ , जिससे किसी भी प्राणी को कष्ट न पहुंचे, ऐसे यतनापूर्वक किये जाने वाले व्यापार-प्रवृत्ति को समिति कहते हैं। समितियाँ पाँच हैं- १. ईर्या समिति, २. भाषा समिति, ३. एषणा समिति, ४. आदान-निक्षेप समिति, और ५. उत्सर्ग समिति ।।
सम्यक् प्रकार से योग का निग्रह करना 'गुप्ति' कहलाता है। योग तीन हैं-१. मनोयोग, २. वचनयोग, और ३. कामयोग । इन तीनों का निग्रह ही क्रमशः मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति कहलाती है । १. ईर्या-समिति
लोकाति वाहिते मार्गे, चुम्बिते भास्वदंशुभिः ।
जन्तुरक्षार्थमालोक्य, गतिरीर्या मता सताम् ।। ३६ ।। जिस मार्ग पर लोगों का आवागमन हो चुका हो और जिस पर सूर्य की किरणें पड़ रही हों या पड़ चुकी हों, उस पर जीव-जन्तुओं की रक्षा के लिए आगे की चार हाथ भूमि देख-देखकर चलना सन्त जनों द्वारा सम्मत ईर्यासमिति है। २. भाषा-समिति
अवद्यत्यागतः सर्वजनीनं मितभाषणम्। प्रिया वाचंयमानां, सा भाषा समितिरुच्यते ।। ३७ ।।
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