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जीवन-रेखा
परन्तु, पिताजी सात वर्ष से बिना नमक-मिर्च की उड़द की दाल और नौ की रूखी रोटी खा रहे थे । अतः उन्होंने सबके साथ भोजन नहीं किया। इससे सभी बरातियों ने तब तक भोजन करने से इन्कार कर दिया. जब तक वे साथ बैठकर भोजन नहीं करते । कुछ देर तक मान-मनुहार होती रही। अन्त में सम्बन्धियों के हार्दिक स्नेह के सामने उन्हें झुकना पड़ा। उन्होंने सात वर्ष से चली आ रही परंपरा को तोड़कर उनके साथ भोजन किया। वस्तुतः हार्दिक स्नेह एवं सच्चा प्यार भी मनुष्य को विवश कर देता है। निर्भयता ___ बहिन के विवाह कार्य से निवृत्त होकर पिताजी एक निकट के सम्बन्धी के विवाह में शामिल होने जा रहे थे। मैं भी साथ थी। हम बैलगाड़ी में जा रहे थे। रास्ते में एक नदी पड़ती थी। उसे पार करते समय बैलों के पैर उखड़ गए और गाड़ीवान भी उन्हें नहीं सँभाल पाया । इस संकट के समय भी वे घबराए नहीं । डरना तो उन्होंने सीखा ही नहीं था। अत: साहस के साथ गाड़ी से कूद पड़े और बैलों की लगाम पकड़कर गाड़ी को नदी से पार कर दिया। परन्तु, यह क्या ? एक सफेद रंग का सर्प उनके पैरों से चिपटा हुआ था। सर्प को देखते ही मैं चीख उठी । परन्तु वे विचलित नहीं हुए और न डरे ही। उन्होंने निर्द्वन्द भाव से सर्प को हाथ से खींचा और पानी में फेंक दिया । अन्तिम वियोग
जब मैं साढ़े ग्यारह वर्ष की थी, तब मेरा विवाह कर दिया । दो वर्ष बड़े आनन्द में बीत गए। विवाह के बाद अभी तक मेरा गौना नहीं हुआ था। उसकी तैयारियाँ हो ही रही थीं कि अचानक उनके देहावसान का समाचार मिला। यह समाचार सुनकर पिताजी के मन पर बहुत गहरा आघात लगा। उन्होंने अपने जीवन में अनेक वियोग सहे, परन्तु यह सबसे कठिन प्राघात था और यों कहिए-गृहस्थ जीवन में
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