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जीवन-रेखा
वे विचलित नहीं
साधना में संलग्न होते, तब श्रौर सब कुछ भूल जाते थे । यहाँ तक कि उन्हें अपने शरीर की भी चिन्ता नहीं रहती थी। एक दिन उन्होंने अपने रुई के गोदाम में आग लगादी और स्वयं वहीं अपने ध्यान में मस्त हो गए । चारों ओर हल्ला मच गया । परन्तु हुए । जब लोग वहाँ पहुँचे तो देखा कि भाग उनके नहीं पाई। उनके निकट में पाँच-पाँच गज तक की रुई सुरक्षित थी । इस घटना ने उनके जीवन को बदल दिया । अब वे जैन-धर्म पर पूरा विश्वास रखने लगे, श्रद्धा में दृढ़ता श्रा गई ।
शरीर को छू ही
समय भी
जा रहे थे ।
आप श्रद्धा-निष्ठ एवं साहसी व्यक्ति थे । घोर संकट के घबराते नहीं थे । एक बार आप किसी कार्यवश 'ऊँट पर जंगल में चलते-चलते ऊँट विक्षिप्त हो गया और आपके प्राण संकट में पड़ गए । परन्तु इस समय भी आप घबराए नहीं । आपने साहस के साथ एक वृक्ष की टहनी को पकड़ा और उस पर चढ़ गए। ऊँट भी उस वृक्ष के चारों ओर चक्कर काटता रहा, परन्तु उनका कुछ नहीं बिगाड़ सका। उन्हें निरन्तर ६ दिन तक वृक्ष पर ही रहना पड़ा, क्योंकि भयानक जंगल होने के कारण उस रास्ते से लोगों का आवागमन कम ही था । फिर भी आपने नमस्कार मंत्र का स्मरण किया और साहस पूर्वक वृक्ष से नीचे उतरे और ऊँट पर काबू पाया । इस तरह आपको धर्म पर अटूट श्रद्धा-निष्ठा थी ।
परिस्थितियों का परिवर्तन
समय परिवर्तनशील है । वह सदा सर्वदा एक-सा नहीं रहता । धूप-छाया की तरह परिवर्तित होता रहता है । कभी राजा को रंक बना देता है, तो कभी दर-दर की खाक छानने वाले भिखारी को छत्रपति बना देता है । मनुष्य सोचता कुछ है और परिस्थितियाँ कुछ और ही बना देती । वह संभल ही नहीं पाता कि जीवन करवटें बदलने लगता
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