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योग-शास्त्र
. . प्राणायाम के स्परूप, उसके भेदों एवं उससे मिलने वाले शुभाशुभ फल तथा उसके माध्यम से होने वाले काल-ज्ञान का वर्णन किया है। इसके अतिरिक्त प्राणायाम से होने वाले अनेक चमत्कारों एवं परकाय प्रवेश जैसे क्लेशकारी साधनों का तथा उससे मिलने वाले फल का भी वर्णन किया है। षष्ठ प्रकाश
प्रस्तुत प्रकाश में परकाय-प्रवेश को अपारमार्थिक एवं अहितकर बताया है और प्राणायाम की प्रक्रिया को साध्य सिद्धि के लिए अनुपयोगी बताकर उसका भी निषेध किया है। इसके अतिरिक्त प्रत्याहार और धारणा के स्वरूप, उसके भेद एवं फल का वर्णन किया है । सप्तम-प्रकाश
इसमें ध्यान के स्वरूप, ध्याता की योग्यता, ध्येय का स्वरूप और धारणाओं के भेदों का तथा धर्म-ध्यान के चार भेदों-१. पिण्डस्थ, २. पदस्थ, ३. रूपस्थ, और ४. रूपातीत ध्यान का और उसमें पिण्डस्थ ध्यान के स्वरूप का निरूपण किया गया है। प्रष्टम-प्रकाश
इसमें पदस्थ ध्यान के स्वरूप, उसके फल, ध्यान के भेद, विभिन्न मंत्र एवं विद्याओं का वर्णन किया है। प्रस्तुत प्रकाश में आचार्य हेमचन्द्र ने लौकिक एवं लोकोत्तर कार्यों की सिद्धि के लिए तथा साध्य को सिद्ध करने के लिए अनेक मंत्रों का तथा उसकी साधना का विस्तार से वर्णन किया है। नवम-प्रकाश ___ प्रस्तुत प्रकाश में रूपस्थ ध्यान के स्वरूप एवं उसके फल का विस्तार से वर्णन किया है ।
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