________________
जीवन-रेखा
आपका ननिहाल नसीराबाद छावनी के निकट बाण्या गाँव में था और वहीं के प्रसिद्ध व्यापारी श्री हजारीमल जी की सुपुत्री अनुपम कुमारी के साथ आपका विवाह हुआ। और जीवन का नया अध्याय शुरू हो गया। जवानी जीवन के उत्थान-पतन का समय है। इस समय शक्ति का विकास होता है। यदि इस समय मानव को पथ-प्रदर्शन एवं सहयोग अच्छा मिल जाए और संगी-साथी योग्य मिल जाए तो वह अपने जीवन को विकास की ओर ले जा सकता है और यदि उसे बुरे साथियों का संपर्क मिल जाए, तो वह अपना पतन भी कर सकता है। वस्तुतः यौवन-जीवन की एक अनुपम शक्ति है, ताकत है। इसका सदुपयोग किया जाए तो मनुष्य का जीवन अपने लिए, धर्म, समाज, प्रान्त एवं राष्ट्र के लिए हितप्रद बन सकता है, और इसका दुरुपयोग करने पर वह सबके लिए विनाश का कारण भी बन सकता है। यह जीवन का एक सुनहरा पृष्ठ है, जिसमें मानव अपने आप को अच्छा या बुरा जैसा चाहे वैसा बना सकता है। .
आपका जीवन प्रारंभ से ही संस्कारित था। बाल्य-काल में मिले हुए सुसंस्कारों का विकास होता रहा है । और आप प्रायः साधु-संन्यासियों के संपर्क में आते रहते थे। इसका ही यह मधुर परिणाम है कि आगे चलकर आप एक महान् साधक बने और अपने जीवन का सही दिशा. में विकास किया। आपके जीवन में अनेक गुण विद्यमान थे। परन्तु सरलता, स्नेहशीलता, दयालुता एवं न्यायप्रियता आपके जीवन के कणकण में समा चुकी थी। आपके जीवन की यह विशेषता थी कि आप कभी किसी के दुःख को देख नहीं सकते थे। आप सदा-सर्वदा दूसरे के दुःख को दूर करने के लिए प्रयत्नशील रहते थे। सेवा-निष्ठ जोवन
वि० सं० १९७४ में प्लेग की भयंकर बीमारी फैल गई। जनमानस आतंक की उत्ताल तरंगों से आन्दोलित एवं विचलित हो उठा ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org