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एक परिशीलन समभाव के महत्व, उसकी साधना, बारह भावनाओं के स्वरूप, उसकी विधि एवं उसके फल का वर्णन किया है। उसके आगे ध्यान के महत्त्व एवं ध्यान को परिपुष्ट करने वाली मैत्री, प्रमोद, करुणा एवं माध्यस्थ भावना का भी वर्णन किया है।
ध्यान में स्थिरता एवं एकाग्रता लाने के लिए आसन एक उपयोगी साधन है। प्रतः प्राचार्य श्री ने विविध आसनों का एवं उनके स्वरूप का उल्लेख किया है। परन्तु, किसी आसन विशेष पर ज्यादा जोर नहीं दिया है। प्रासनों के सम्बन्ध में उनका यह संकेत महत्त्वपूर्ण है कि-"जिस-जिस आसन का प्रयोग करने से मन स्थिर होता हो, उसी प्रासन का ध्यान के साधन के रूप में प्रयोग करना चाहिए।" पञ्चम-प्रकाश
पातञ्जल योग-सूत्र में प्राणायाम को योग का चतुर्थ अंग माना है और उसे मुक्ति-साधना के लिए उपयोगी माना है। परन्तु, जैन विचारक मोक्ष-साधना के साधन रूप ध्यान में इसे सहायक नहीं मानते। प्राचार्य हेमचन्द्र ने भी इसे मोक्ष-साधना के लिए उपयोगी नहीं माना है । उन्होने साधक के लिए प्राणायाम या हठयोग की साधना का स्पष्ट शब्दों में निषेध किया है। इससे मन का कुछ देर के लिए निरोध हो जाता है, परन्तु उसमें एकाग्रता एवं स्थिरता नहीं पाती। और इस प्रक्रिया से मन में शान्ति का प्रादुर्भाव नहीं होता, बल्कि संक्लेश उत्पन्न होता है।
. योग-साधना के लिए प्राणायाम को निरुपयोगी बताने पर भी उसका प्रस्तुत ग्रन्थ में विस्तार से वर्णन किया है। २७३ श्लोकों में .१. तन्नाप्नोति मनः स्वास्थ्यं प्राणायामः कथितम् । प्राणस्यायमने पीडा तस्यां स्याच्चित-विप्लवः।
-योग-शास्त्र, ६, ४.
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