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योग-शास्त्र
प्रादि सभी विषयों पर आपका अधिकार था और उक्त · सभी विषयों पर महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे हैं। आपके विशाल एवं गहन अध्ययन एवं ज्ञान के कारण आपको 'कलिकाल सर्वज्ञ' के नाम से सम्बोधित किया जाता रहा है। ___प्राचार्य हेमचन्द्र ने योग पर योग-शास्त्र लिखा है । उसमें पातञ्जल योग-सूत्र में निर्दिष्ट अष्टांग योग के क्रम से गृहस्थ जीवन एवं साधु. जीवन की प्राचार साधना का जैनागम के अनुसार वर्णन किया है। इसमें प्रासन, प्राणायाम आदि से सम्बन्धित बातों का भी विस्तृत वर्णन है । और प्राचार्य शुभचन्द्र के ज्ञानार्णव में वर्णित पदस्थ, पिण्डस्थ, रूपस्थ और रूपातीत ध्यानों का भी उल्लेख किया है । अन्त में प्राचार्य श्री ने अपने स्वानुभव के आधार पर मन के चार भेदों-विक्षिप्त, यातायात, श्लिष्ट और सुलीन-का वर्णन करके नवीनता लाने का प्रयत्न किया है। निस्सन्देह योग-शास्त्र जैन तत्त्व ज्ञान, प्राचार एवं योग-साधना का एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। प्राचार्य शुभचन्द्र
योग विषय पर प्राचार्य शुभचन्द्र ने ज्ञानार्णव की रचना की है। ज्ञानार्णव और योग-शास्त्र में बहुत-सा विषय एक-सा है। ज्ञानार्णव में सर्ग २६ से ४२ तक प्राणायाम और ध्यान के स्वरूप एवं भेदों का वर्णन किया है। यही वर्णन योग-शास्त्र में पञ्चम प्रकाश से एकादश प्रकाश तक के वर्णन में मिलता है। उभय ग्रन्थों में वणित विषय ही नहीं, बल्कि शब्दों में भी बहुत कुछ समानता है। प्राणायाम आदि से प्राप्त होने वाली लब्धियों एवं परकाय आदि प्रवेश के फल का निरूपण करने के बाद दोनों प्राचार्यों ने प्राणायाम को साध्य सिद्धि के लिए मनावश्यक, निरुपयोगी, अहितकारक एवं अनर्थकारी बताया है। ज्ञानार्णव में २१ से २७ सर्गों में यह बताया है कि प्रात्मा स्वयं ज्ञान स्वरूप है। कषाय प्रादि दोषों ने आत्म-शक्तियों को प्रावृत्त कर रखा है। प्रतः
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