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सूत्रकृतामसूत्र क्लिश्यमानानां पुरुषाणां त्राणकारणं सम्यग्दर्शनादिकमोक्षमार्ग एव, नाऽन्यः कश्चिदुपायः। एषा सम्यग्ज्ञानादिसाध्या मोक्षाऽत्राप्तिरेव 'पतिहा' प्रतिष्ठा-संसार भ्रमणविरतिलक्षणा 'पवुरचई' पोच्यते-प्रकर्षण तत्त्वज्ञै रुच्यते-प्रतिपायते ।२३। ___ कथंभूतः साधुः आश्वासद्वीपः ? तत्राहमूलम्-आयगुत्ते सया दंते, छिन्नसोए अणासवे।
जे धम्म सुद्ध मक्खाइ, पंडिपुन्नमणेलिसं॥२४॥ छाया--आत्मगुप्तः सदा दान्ता, छिन्नस्रोता अनाश्रवः ।
यो धर्म शुद्धमाख्याति, प्रतिपूर्णमनीदृशम् ॥२४॥ लिए दीप विश्रान्ति का स्थान होता है, उसी प्रकार संसार में क्लेश पाने वाले जीवों के लिए सम्यग्दर्शनादि मोक्ष मार्ग ही त्राण (रक्षा)का कारण है। इसके अतिरिक्त त्राण का अन्य कोई साधन नहीं हैं। सम्यग्दर्शन-ज्ञान आदि से होने वाली मोक्ष की प्राप्ति ही प्रतिष्ठा है, ऐसा तत्वज्ञ पुरुषों ने प्रतिपादन किया है ॥२३॥
कैसा साधु विश्रान्ति के लिए द्वीप के समान हैं, इस विषय में कहते हैं-'आपगुत्ते' इत्यादि ।
शब्दार्थ-'आयगुत्ते-आत्मगुप्तः' अपने आत्मा को पापसे गोपन करनेवाला 'सया दंते-सदा दान्त तथा सदा जितेन्द्रिय होकर रहनेवाला 'छिन्न सोए-छिन्न स्रोता:' संसारकी मिथ्यात्व आदि धाराको तोडने. वाला तथा 'अणासवे-अनाश्रयः' आश्रव रहित 'जे-प:' जो पुरुष है
સ્થાન થાય છે, એ જ પ્રમાણે સંસારમાં દુઃખ પામવાવાળા જીવોને માટે સમ્યક દર્શન વિગેરે મોક્ષમાર્ગ જ ત્રાણ-(રક્ષા)નું કારણ છે. આ શિવાય ત્રણ-રક્ષાનું બીજુ કાંઈ જ સાધન નથી. સમ્યક્ દર્શન-જ્ઞાન, વિગેરેથી થવા વાળી મોક્ષની પ્રાપ્તી જ પ્રતિષ્ઠારૂપ છે તેમ તત્વને જાણવાવાળા પુરૂએ પ્રતિપાદન કર્યું છે. ૨૩
કેવા સાધુ વિશ્રાતિ માટે દ્વીપ જેવા છે, આ વિષયમાં કહે છે કે'आयगुत्ते' त्या
शहाथ-'आयगुत्ते -आत्मगुप्तः' पोताना मामाने पायथा गोपन२१) ४२॥वाणा 'सया दंते-सदा दान्तः' तथा सह तन्द्रिय सनीने २७१. वाणा छिन्नसोए-हिन्नस्रोताः' संसारनी मिथ्यात्व विशेरे याराने तावा. पा तथा 'अणास्रवे-अनाश्रवः' मा २खित 'जे-या' रे ५३५ छ मेर
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