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सूत्रकृताङ्गसूत्रे बम्-विउहिएणं समयाणुसिटे डैहरेण वुड्डेण उ चोइए य।
अच्चुट्रियाएं घडदासिएँ वा अगारिणं वा समयाणुसि ।। छाया-ज्युत्थितेन समयानुशिष्टो डहरेण वृद्धेन तु नोदितश्च ।
अत्युत्थितया घटदास्या वा, अगारिणां वा समयाऽनुशिष्टः ॥८॥ मिच्छामि दुक्कडं' इस प्रकार नहीं कहता बह साधु संसार प्रवाह में 'पड़ा रहता है । संसारसागर के पार नहीं पहुँच सकता ॥७॥
विउहितेणं' इत्यादि।
शब्दार्थ-'विउहिएणं-व्युस्थितेन' शास्त्र के प्रतिकूल आचरण करनेवाले के द्वारा 'समएण-समयेन' सर्वज्ञप्रणीत आगमके अनुसार 'अणुसिडे-अनुशासितः' अनुशासित-मूलोत्तर गुणसे स्खलित होकर 'चोइए य-नोदितश्च' प्रेरित किया हुआ साधु 'डहरेण-दहरेण' छोटी वयवाले के द्वारा 'बुडेण उ-वृद्धेन तु' अथवा अधिक ऊपरवाले के द्वारा 'चोहए य-नोदितोऽपि' शुभ कार्य की ओर प्रेरित किया हुआ तथा 'अच्चुछियाए-अत्युत्थितया' अति नीच स्वभाववाली दासी के द्वारा अथवा 'घडदासिए वा-घटदास्या वा' जलपहन करनेवाली दासी के द्वारा प्रेरित किआ हुया तथा 'अगारिणं वा-गृहस्थानां वो कोई गृहस्थ जनके द्वारा 'समयाणुसिटे-समयानुशिष्ठः' गृहस्थधर्मानुसार शिक्षा देने पर अर्थात् गृहस्थ के द्वारा अपमान पूर्वक आक्षेप करने पर भी साधु क्रोध न करे ॥८॥
'मिच्छामि दुक्कड' मा प्रमाणे ती नथी. ते साधु ससाना प्रवाहमा ५ રહે છે. અર્થાત્ સંસારસાગરની પાર પહોંચી શકતા નથી. __'विउदिएणं' त्याह
साथ-'विउदिएण-व्युत्थितेन' शाखथी १ि३६ माय ४२॥२ वारा 'समण-समयेन' स xeflks 24 अनुसार 'अणुसिळे- अनुशा सेतः' मनुशा. सित भूटोत्तर शुलथी मलित वाथी 'चोइए य-नोदितश्च' प्रेरित ४२वा मावस साधु 'डहरेण-दहरेण' नानी भरवणा दा 'बुड्ढेण उ--वृद्धेन तु' अथ पधारे GA२१४ा द्वारा 'चाइए य-नोदितोऽपि' शुमय त२३ प्रेरित ३२१ मा मावेस तया 'अगारिणं वा-गृहस्थानां वा' यन द्वारा 'समयाणुमिद्वे-समयानु. ફિB.' ગૃહસ્થના ધર્મ પ્રમાણે શિક્ષા આપવામાં આવે ત્યારે અર્થાત્ ગૃહસ્થ દ્વારા અપમાન પૂર્વક આક્ષેપ કરવામાં આવે તે પણ સાધુએ ક્રોધ કર નહીં પ૮
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