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सूत्रकृतोङ्गसूत्रे मूलम्-अभविंसु पुरा वीरों आगमिस्ता वि सुव्वया।
दुन्निबोहस्त मग्गस्त अंतं पाउकरा तिन्ने तिबेमि ॥२५॥ छाया--प्रभूवन हि पुरा वीरा आगामिन्यपि सुत्रताः।
दुनिबोधस्य मार्गस्य अन्तं मादुष्करास्तीः ॥इति ब्रवीमि॥२५॥ अन्वयार्थः--(पुरा) पुरा-अतीतकाले बहवः (वीरा) वीराः कर्मविदारण. समर्था वीरमुनयः (अभविंस) अभून् तथा (आगमिस्सावि) आगमिष्यत्यपि
'अभविसु पुरा वीरा' इत्यादि ।
शब्दार्थ--'पुरा-पुरा' भूतकाल में अनेक 'बीरा-वीरा' कर्मके विदारणमें समर्थ मुनि 'अभविसु-अभूवन्' हो चुके हैं तथा 'आगमि.
सावि-भागमिष्यत्यपि' भविष्यकालमें भी 'सुब्धयो-सुव्रताः' पांचमहाव्रतको धारण करने वाले सुव्रत मुनि होंगे उपलक्षण से वर्तमानकोल में भी अनेक मुनि विद्यमान हैं वे सब वीर 'दुन्नियोहस्स-दुनियोधस्य' पामर प्राणिके द्वारा जानने में अशक्य ऐसे 'मग्गस्त-मार्गस्य' सम्यक दर्शनज्ञान चारित्ररूप मोक्षमार्गके 'अंत-अन्तम्' अंत करके 'पाउकरा -प्रादुष्कराः' अन्य भव्यों के प्रति प्रगट करने वाले होते हैं और उपदेशक हो करके 'तिमा-ती' भवके पारको प्राप्त हो गये हैं 'त्ति-इति' इस प्रकारसे जैसा भगवान् के समीपसे मैंने सुना हैं उस प्रकार से 'बेमि-ब्रवीमि' कहता हूं ॥२५॥
अन्वयार्थ-अतीत काल में बहुत से वीर मुनि हुए हैं और भवि. ध्यत् काल में भी पंचमहाव्रतधारी मुनि होंगे, उपलक्षण से वर्तमान
'अभविसु पुरा वीरा' त्या
शा-'पुरा-पुरा' भूतभा भने 'वीरा-वीराः' भनु विहारय ४२वामी समर्थ भुनि 'अभविं-अभूवन्' ७ गया है. तथा 'आगमिस्मावि-आगमिष्यत्यपि' भविष्यमा ५५ 'सुबया-सुरताः' पांय महान. તેને ધારણ કરવાવાળા સુત્રત મુનિ થશે. ઉપલક્ષણથી વર્તમાનકાળમાં પણ सन भनियो विद्यमान छ तमा मा 'दुन्निवाहस्व-दुर्निबोधस्य' पाभर प्रालिये। द्वा२१ तापामा मशय सेवा 'मगास्स-मार्गस्य'सभ्यश्शन ज्ञान, यारित्र ३५ भोक्ष भागना 'अंतं -अन्तम्' मत २ ‘पाउकरा-प्रादृष्कराः' मान्य नव्या प्रत्ये प्रगट ४२वा डाय छे. सने 64हेश पीने 'तिन्नातीर्णाः' ११ ३पी समुद्री पा२ थ ॥ छे. 'त्ति-इति मा प्रभाग २ शत भगवान पांसेथी में सinuयुं छे प्रभार 'बेमि-ब्रवीमि' हुँ छु ॥२५॥
मन्वयार्थ --भूतभा पवार भुनिया च्या छ भने सविध्या. ળમાં પણ પાંચ મહાવ્રત ધારી મુનિયે થશે. ઉપલક્ષણથી વર્તમાનકાળમાં
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