Book Title: Sutrakritanga Sutram Part 03
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

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Page 577
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृताङ्गसूत्रे त्सृष्टः=त्यक्तः स्नानादिसंस्कारराहित्येन कायः कायममत्वं येन स व्युत्सृष्टकायः स्वक्तशरीरममत्रः 'त्ति' इति एतादृशः पूर्वोक्ताऽध्ययनार्थेषु दत्तचित्तो भवेत् 'से'= सः 'माहणे सिवा' माहन इति वा सस्थावरजीवान 'माहण' इत्येवं स्थनमवृत्ति Starsat माहन इति वा । अथवा नवविध गुप्तियुक्तब्रह्म वर्यधारणात् ब्राह्मणः, अनन्तरोक्त गुणयुक्तत्वात् ब्राह्मगः इतिवाच्यः १ । 'समणेति वा' श्रमण इति वा, श्राम्यति द्वादशविधतपसि श्रमकरणादिति श्रमणः अथवा 'समणे' इत्यस्य, समनाः इतिच्छाया, तत्र मनसा दयाद्रमनसा सहितः समनाः दयार्द्रमनोयुक्तत्वात्, यद्वासमणेति समझना इतिच्छाया माकृतत्वात्मकारलोपः समः शत्रुमित्रेषु तुल्यं मनोअथवा राग द्वेष आदि समस्त मलों से रहित होने के कारण निर्मल स्वर्ण के समान शुद्ध द्रव्य स्वरूप । 1 स्नान आदि शारीरिक संस्कारों का त्याग जिसने कर दिया हो और जो शरीर की ममता त्याग चुका हो, वह व्युत्सृष्टका' कहलाता है। जो द्रविक और व्युत्सृष्ट काय है तथा पूर्वोक्त अध्ययनों के अर्थके अनुसार मनोयोग पूर्वक प्रवृत्ति करता है, वह माहन अर्थात् 'मा हन' ( स स्थावर जीवों को मत मारो) ऐसी कथनी और करणी वाला होता है अथवा नौ वाडरूप गुप्तियों से युक्त ब्रह्मचर्य का धारक होने से ब्राह्मण कहलाता है १ वह 'श्रमण' भी कहा जाता है। 'समणे' अर्थात् श्रमण का अर्थ है - बारह प्रकार की तपश्चर्या में श्रम करने वाला । 'समणे' की संस्कृत छाया 'समना: ' भी होती है, इसका अर्थ है- दयायुक्त मन वाला अर्थात् प्राणी मात्र पर अनुकम्पा की भावना से युक्त । अथवा 'समणे' સ્નાન વિગેરે શારીરિક-શરીર સબંધી સંસ્કારોના જેઓએ ત્યાગ કરી દીધા છે. અને જેએ શરીરની મમતાના ત્યાગ કરી ચૂક્યા હોય તેએ 'व्युत्सृष्ट अय' हेवाय छे. भेयेो द्रविष्ठ भने 'व्युत्सृष्टप्राय' होय छे, तथा પૂર્વોક્ત અધ્યયનાના મની અનુસાર મનેયાગ પૂર્ણાંક પ્રવૃત્તિ કરે છે. તે भोडन, अर्थात् 'मा हन' त्रस भने स्थावर भवनेन भारी सेवा उथन અને કરણી વાળા હાય છે, અથવા નવ પ્રકારની ‘નવલાડ રૂપ' ગુપ્તિયાથી યુક્ત બ્રહ્મચર્યને ધારણ કરવાના હાવાથી બ્રાહ્મણુ કહેવાય છે. (૧) ते श्रम पशु उडेवाय हे 'समणे' अर्थात् श्रम- प्राश्नी तपश्चर्याम श्रम इरनार थे प्रमाणे छे. 'समणे' नी संस्कृत छाया 'समनाः' એ પ્રમાણે પણ થાય છે, તેને મ યા યુક્ત મનવાળે! એ પ્રમાણે થાય छे, अर्थात् श्रीमात्र पर अनुमभ्यानी भावनाथी युक्त अथवा 'समणे' नी For Private And Personal Use Only

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