________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सूत्रकृतास्त्रे ध्युत्सृष्टकायो भवेत् स एव माहन इति वा १, श्रमण इति वार, भिक्षुरिति वा३, निम्रन्थ इति वा४, माहनादि विशेषणचतुष्टययुक्तः इति 'वच्चे' वाच्या वक्तव्यो भवतीति भावः ॥मू० १॥
यो दान्तो द्रविको व्युत्सृष्ट कायः स एव माहनश्रमणभिक्षुनिन्थशब्देन वाच्यो भवतीति भगवता वर्णितं, तदुपश्रुत्य गगधरः पृच्छति-'पडिआहे' इत्यादि।
मूलम्-पडिआह-भंते ! कहं नु दंते दविए वोसट्रकाएत्ति वच्चे माहणेत्ति वा। समणेत्ति वा भिक्खूत्ति वा णिग्गंथेत्ति वा तं णो ब्रूहि महामुणी ॥सू०२॥
छाया--प्रत्याह-भदन्न ! कथं नु दान्तो द्रविका घ्युत्सृष्टकाय इति वाच्यःमाहण इति वा, श्रमण इति वा, भिक्षुरिति वा निर्ग्रन्थ इति वा ? तन्नो बहि महामुने ॥सू० २॥
टीका-भगवत्पतिपादित दान्तद्रधिकादिमुनीनां लक्षणानि श्रोतुकामो गौतमः 'पडिआहे' प्रत्याह-कथितवान् ‘भंते' हे भदन्त ! अथवा-भयान्त ! सर्वभयानाम्
इस प्रकार पूर्वोक्त पन्द्रह अध्ययनों में प्ररूपित अर्थ का आचरण करने वाला, इन्द्रियों का दमन करने वाला, संयमवान कायममत्व का त्यागी मुनि (१) माहन (२) श्रमण (३) भिक्षु और (४) निर्ग्रन्थ कह लाता है। उसे इन चारों विशेषणों से युक्त कहना चाहिए ॥१॥
जो दान्त, द्रविक एवं व्युत्सृष्टकाय होता है, वह मोहन, श्रमण, भिक्षु और निर्ग्रन्थ शब्दों का वाच्य होता है, ऐसा भगवान् ने वर्णन किया है। उसे श्रवण करके गणधर प्रश्न करते हैं-'पडिआहे' इत्यादि ।
टीकार्थ-भगवान के द्वारा प्रतिपादित मुनि के दान्त द्रविक आदि लक्षणों को श्रवण करने के अभिलाषी गौतम ने कहा-'भंते?' हे भदन्त ।
આ રીતે પૂર્વોક્ત પંદર અધ્યયનમાં પ્રરૂપણ કરેલ અર્થ-વિષયનું આચરણ કરનાર, ઇન્દ્રિયોનું દમન કરવાવાળા સંયમવાન, શરીરના મમત્વથી रहित, भुमि (१) माइन (२) श्रम (3) भिक्षु अने (४) मिश्रन्थ उपाय છે. તેને આ ચારે વિશેષણોથી યુક્ત કહેવા જોઈએ. આવા
रेहान्त, द्रवि४, अने व्युत्सृष्टय डाय छे, ते भान, श्रम, मिझु અને નિન્ય શબ્દોથી કહેવાને ચગ્ય હોય છે, એ પ્રમાણે ભગવાને વર્ણન १२स छ. तेने सांमजीने पर प्रश्न पूछे छे. 'पडिआह' त्यात
ટીકાઈ–ભગવાન દ્વારા પ્રતિપાદન કરવામાં આવેલ મુનિના દાન્ત, દ્રવિક વિગેરે લક્ષણેને સાંભળવાની ઈચ્છાવાળા ગૌતમસ્વામીએ કહ્યું કે મારે
For Private And Personal Use Only