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छाया - समालपेत् प्रतिपूर्ण भाषी, निशम्य सम्यगर्थदर्शी ।
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सूत्रकृताङ्ग सूत्रे
आइया शुद्धं वचनमभियुञ्जीत, अभिसन्धयेत्पापविवेकं भिक्षुः ||२४|| अन्वयार्थ :- -(भिक्खू ) भिक्षुः साधुः 'पडिपुन्नभासी' प्रतिपूर्ण भाषी - स्प ष्ट्राविता ( निसामिया) निशम्य - गुरुमु बात् सूत्रार्थं सम्यगवधार्य (समिया ) सम्यक् सम्यग्रूपेण ( अद्वदंसी) अर्थदर्शी तसार्थज्ञाता ( आणाइ) आज्ञया - तीर्थ
'समालवेज्जा' इत्यादि ।
शब्दार्थ -- ' भिक्खू - भिक्षुः' साधु 'पडिपुण्णभासी - प्रति पूर्ण भाषी ' स्पष्टार्थ को कहे अर्थात् जो अर्थ अल्पाक्षरसे समझने में शक्य न हो ऐसे अर्थ को विस्तृत रूपसे जिस प्रकार से श्रोता समझ सके उस रूपसे 'समालवेज्जा - समालपेत्' कहे 'निसामिया - निशम्य' गुरुमुख से सूत्र और उसके अर्थ को सम्यक् रूपसे समझकर 'समिया - सम्यकू' सम्यक प्रकार से 'असी - अर्थदर्शी' तत्वार्थ को जानने वाला 'आणाइ आइया' तीर्थंकर प्रति ॥दित शास्त्र के अनुसार 'शुद्ध-शुद्धम्' निरवय 'वर्ण-वचनम् ' वचनका भिउंजे अभियुञ्जीत' प्रयोग करे ऐसा करने वाला साधु 'पावविवेगं पापविवेकम्' सत्कार आदि निरपेक्ष होने से दोष रहित वचन 'अभिसंघए- अभिसंदध्यात् कथन करे ||२४||
अन्वयार्थ - निर्दोष भिक्षा ग्रहण करने वाला और स्पष्टार्थवक्ता साधु गुरुमुख से सूत्रार्थ को अच्छे प्रकार समझ कर समीचीन रीति
'समालवेज्जा' इत्याहि
शब्दार्थ' - 'भिक्खू - भिक्षुः ' साधु 'पडिपुण्णभासी - प्रतिपूर्ण भाषी' स्पष्टार्थ પૂર્વક કથન કરે અર્થાત્ જે અાક્ષરથી સમજવામાં શકય ન હોય એવા અને વિસ્તાર પૂર્વક કે જે રીતે સાંભળનારાએ સમજી શકે એ રીતે 'समालवेज्जा - समालपेत्' डे ' निखामिया - निशम्य' गु३भुषथी सूत्र मने तेना मर्थने सारी रीते समने 'समिया - सम्यकू' सभ्य प्रहारथी 'अट्ठदेसी - अर्थ दर्शी' तत्वार्थने अणुवावाजा ' आणाइ - आज्ञया' तीर्थ ५२ प्रतिपादित शास्त्र अभाये 'सुद्ध'-शुद्धम्' निरवद्य 'घयणं वचनम्' वयननुं 'भिरंजे अभियुञ्जीत ' प्रयोग उसे मे उषावाणी साधु 'पावविवेगं - पापविवेकम् ' सत्४२ विगेरे अपेक्षा रहित होवाथी होष रहित वयनतु' 'अभिसंघए- अभिसंदध्यात् ' થન કરે ારકા
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અન્નયા —નિર્દોષ ભિક્ષા ગ્રહણુ કરવાવાળા અને સ્પષ્ટ અને કહે. જાવાળા સાધુ સુખથી સૂત્રાને સારી રીતે સમજીને સમ્યક્ રીતથી તત્વા ને