Book Title: Sutrakritanga Sutram Part 03
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 543
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५३२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृतात्रे नापितोपकरणविशेषः 'अंतेण' अन्तेन-मान्तभागेन 'वहई' वहति केशानपनयति । यथा 'चर्क' चक्रं रथचक्रम् 'अंतेय' अन्तेन प्रान्तभागेन नेमिरूपेण 'लोहई' लुठति चलति । यथा क्षुरस्य रथचक्रस्य च प्रान्तभागेनैव क्रियाकारित्वं भवति तथैव विषयकपायपर्यन्तव चित्वेनैव महामुनेरपि ज्ञानावरणीयाद्यष्टविधकर्मक्षपणेsuक्रियाकारिणवं भवतीति ॥१४॥ मूलम् - अंताणि धीरा सैवंति तेण अंतकरा इहे । ठाणे धम्ममाराहिउं पैरा ॥१५॥ ईह माणुस छाया - अन्तान धीरा सेवन्ते तेनान्तकरा इह | sengers स्थाने धर्ममाराधयितुं नराः || १५ || प्रान्त - भाग से केशोंको हटाता है अथवा जैसे चाक (पहिया) प्रान्तभाग से चलता है, उसी प्रकार महामुनि विषय कषाय से दूर रह कर ही ज्ञानावरणीय आदि आठ प्रकार के कर्म के क्षपण की अर्थक्रिया कर सकता है ||१४|| 'अताणि धीरा सेवंति' इत्यादि । शब्दार्थ - 'धीरा - धीराः परीषह और उपसर्ग को सहन करने वाले 'अताणि-अन्तान' अंत-प्रांत आहारका 'सेवति-सेवन्ते' से बन करते हैं 'तेण तेन' उस अन्तमान्त आहार के सेवन से 'इह-इह ' इस संसार में 'अंतकरा - अन्तकराः ' सर्व दुःखों के अन्त करनेवाले होते हैं अतः उस अन्तप्रान्त के आहार करने वाले 'णरा - नराः ' पुरुष 'इह - इह' इस 'माणुस्सए ठाणे - मानुष्य के स्थाने' मनुष्य लोक में 'धम्मं -અસ્ત્રો અ‘તભાગથી કેશેાને હટાવે છે, અથવા જેમ પૈડુ અન્ત ભાગથી ચાલે છે, એજ પ્રમાણે મહામુનિ વિષય, કષાયથી દૂર રહીને જ્ઞાનાવરણીય વિગેર આઠ પ્રકારના કર્મના ક્ષપણુની ક્રિયા કરી શકે છે. ૧૪મા ताणि धीरा सेवं त' इत्यादि शब्दार्थ - धीरा - धीराः ' परीषद्ध भने उपसर्गीने सडन अश्वावाजा 'अ ताणि- अन्यान्' म तयांत आहारने 'सेवंति सेवन्ते' सेवे छे. 'तेण-वेन' मे अन्त प्रांत आहारना सेवनथी 'इह - इह' मा संसारमा 'अंतकरा - अन्तकराः ' સર્વ દુઃખાને અ ંત કરવાવાળા થાય છે. અતઃ એ અંતપ્રાંતના માહાર કરवावाणा 'जरा - नराः ' ३ष 'इह - इद्द' मा 'माणुस्साए ठाणे - मानुष्य के स्थाने' For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596