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सूत्रकृतात्रे (अमगुस्सेसु) अमनुष्येषु-मनुष्यभिन्नेषु प्राणिषु (णो तहा) नो तथा-मनुष्य वदन्ययोनौ कुनकस्यत्वं न भवति तत्र धर्माराधनामावादतो मनुष्य एव सिद्धिगति भाग् भवतीति (मे) मया (सुयं) श्रुतं भगवत्समीपे साक्षात् श्रवणगोचरोकृतमिति ॥१६॥ - टीका-अथ सुधर्मस्वामी जम्बूस्वामिनं कथयति-हे जम्यूः ! 'उत्तरीए' लोकोत्तरीये जिनशासने 'इथे' इद-वक्ष्यमाणं 'सुर्य' श्रुतं मया, किं श्रुतम् ? इत्याह-धर्माराधनयोग्या एव मनुष्याः 'णिटिगट्टा' निष्ठितार्थाः कृतकृत्याः मोक्षगामिनो भवन्ति । वा-अथवा अवशिष्टकर्माणः केचन कर्मसद्भावात् सम्यक्वादि सामग्री सद्भावेऽपि तद्भवे मुक्ता न भवन्ति किन्तु 'देवा' देवाः-सीधर्मायो देवाः 'एयं' एतत् पूर्वोक्त मोक्षगामित्रम् 'गेति' एकेषाम्-केपाश्चित् धर्म आदि विमानों में देव रूप से उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार की कृन कृत्यता किन्हीं किन्हीं मनुष्यों को ही प्राप्त होती है, मनुष्य से भिन्न योनिक प्राणियों को प्राप्त नहीं होती। क्योंकि वे वैसा धर्माराधन नहीं कर सकते। अतएव मनुष्य ही सिद्धि का भागी होता है। यह मैंने भगवान के समीप साक्षात् सुना है ॥१६॥
टीकार्य-सुधर्माःवामी जम्बू स्वामी से कहते हैं-हे जम्बू ? लोको त्तर जिनशासन में मैंने यह सुना है कि धर्माराधन के योग्य ही मनुष्य मोक्षगामी होते हैं अथवा जिनके कर्म शेष रह जाते हैं, वे सम्यग्दर्शन
आदि सामग्री का सद्भाव होने पर भी कर्मों के मद्भाव के कारण उसकी परिपूर्णता न होने से उसी भवमें मोक्ष नहीं जाते किन्तु सौधर्मादि देव लोक में देव होते हैं। किन्हीं किन्हीं मनुष्यों को ही मोक्ष प्राप्ति होती है मनुष्य से भिन्न अन्य प्राणी उसी भव में कृतकृत्य नहीं જ સિદ્ધિને પામનાર બને છે. એ મેં ભગવાનના મુખેથી સાક્ષાત સાંભળ્યું છે. તેના
ટકાથં--સુધર્માસ્વામી જબૂસ્વામીને કહે છે કે- હે જમ્બુ લકત્તર જીન શાસનમાં મેં એવું સાંભળ્યું છે કે-ધર્મારાધનને એગ્ય મનુષ્ય જ મોક્ષ ગામી હોય છે. અથવા જેમને કમ શેષ રહી જાય તેઓ સમ્યક્દર્શન વિગેરે સામગ્રીને સદ્ભાવ હોય તે પણ કર્મોના અભાવને કારણે તેની પરિપૂર્ણતા ન હેવાથી એજ ભાવમાં મોક્ષ પામતા નથી. પરંતુ સૌધર્મ વિગેરે દેવલેકમાં દેવ થાય છે. કેઈ કોઈ મનુષ્યને જ મોક્ષની પ્રાપ્તિ થાય છે. મનુ. ગથી ભિન્ન અન્ય પ્રાણી એજ ભવમાં કૃતકૃત્ય થઈ શકતા નથી. કેમકે
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