Book Title: Sutrakritanga Sutram Part 03
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 560
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १५ आदानीयस्वरूपनिरूपणम् मूलम्-अणुत्तरे ये ठाणे से कासवेण पवेईए। जे किंचा णिवुडा एंगे नि," पीवंति पंडियाँ॥२१॥ छाया-अनुत्तरं च स्थानं तत् काश्यपेन प्रवेदितम् । ___ यत्कृत्वा निता एके निष्ठां प्राप्नुवन्ति पण्डिताः ॥२१॥ अन्वयार्थ:-(से य) तच्च शास्त्रप्रसिद्धम् (अणुतरे) अनुत्तरम् , न उत्तरं यस्माद तत् तपः संयमादिरूपम् (ठाणं) स्थानं संयमानुष्ठानरूपं (कासवेण) काश्यपेनकश्यपगोत्रीयश्रीवर्धमानस्वामिना (पवेइए) प्रवेदितमू-परूपितम् (ज) यद्अनुत्तरं स्थानं (किच्चा) कृत्वा समाराध्य (एगे) एके केचन महापुरुषाः (निव्वुडा) निताः कषायानलनाशेन शीतलीभूताः अतएव (पंडिया) पण्डिता:पापभीरवो मुनयः (नि8) निष्ठां संसारपर्यवसानरूपां सिद्धिम् (पावंति) प्राप्नु. वन्ति मोक्षं गच्छन्तीति भावः ॥२१॥ 'अणुत्तरे य ठाणे से' इत्यादि। शब्दार्थ--'से य-तच्च' शास्त्रप्रसिद्ध 'ठाणे-स्थानम्' संयमानुष्ठानरूप स्थान 'कासवेण-काश्यपेन' काश्यपगोत्रवाले श्री वर्धमान स्वामीने पवेहए-प्रवेदितम्' प्ररूपित किया है 'जं-ठाणं-यत्स्थानम् जो स्थान अनुत्तर तप संयम आदि 'किच्चा-कृत्वा' करके 'एगे-एके कोई महापुरुष 'निम्बुडा-निवृताः' निवृत्त होते हैं अतः 'पंडिया-पण्डिताः' पोप भीर बुद्धिमान मुनि 'निढें-निष्ठाम्' संसार के अन्तको 'पाति-प्राप्नुवन्ति' प्राप्त करते हैं ॥२१॥ अन्वयार्थ--काश्यगोत्रीय श्री वर्धमान स्वामी के द्वारा प्ररूपित संयम रूप स्थान सर्वोत्तम स्थान है, जिसकी आराधना करके अनेक 'अणुत्तरे य ठाणे से' त्या शहाय-से य-सच्च' शाश्व प्रसिद्ध 'ठाणे-स्थानम्' सयभानु 311३५ स्थान 'कासवेण-काश्यपेन' ॥श्य५ गोत्रा श्री. १ भान २वामी 'पवेइए प्रवेदितम्' ५३पित इयु छे. 'जं ठाण-यत् स्थानम्' २ थान अनुत्तर त५ सयम विगैरे 'किच्चा-कृत्वा' अरीन 'एगे-एके' । महापु३५ 'निव्वुडा-निवृ'ना निवत्त थाय छे. 'अतः 'पंडिया-पण्डिताः' ५५ मि३ भुद्धिमान मुनि 'निद्र-निष्ठाम' सारना मतने 'पावंति-प्राप्नुवन्ति' प्राप्त ४३ छ. ॥२१॥ અન્વયાર્થ-કાશ્યપ ત્રિીય શ્રીવર્ધમાન સ્વામી દ્વારા પ્રરૂપિત સંયમ રૂપ સ્થાન સર્વોત્તમ સ્થાન છે. જેની આરાધના કરીને અનેક મહાપુરૂષ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596