________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
५०६
आत्मनः सकाशात् पृथन भवति स मुनिर्भूतभविष्यद्वर्तमानकालिककर्मविनिर्मुको भूत्वा मोक्षं प्राप्नोतीति भावः ॥६॥ मूलम्-अकुव्वओ गवं नत्थि कम्मं णाम विजाणइ ।
विन्नाय से महावीरे 'जे ने जाई ण मिर्जइ ॥७॥ छाया- अकुर्वतो नवं नास्ति कर्म नाम विजानाति ।
विज्ञाय स महावीरो यो न याति न म्रियते ॥७॥ भविष्यत् और वर्तमान काल संबंधी कर्मों से रहित होकर मोक्ष प्राप्त करता है ॥६॥
'अकुव्यओ' इत्यादि।
शब्दार्थ-'अकुव्धो -अकुर्वता' पापकर्म को नहीं करनेवाले मुनिको 'णवं-नवम्' ज्ञानावरणीय आदि नूतनकर्म का बंध 'णस्थिनास्ति' नहीं होता है कारणकी 'से-स' वे 'महावीरे-महावीरः' महा. वीर पुरुष 'कम्म-कर्म-आठ प्रकार के कर्म को तथा 'नाम-नाम' कर्म निर्जराको भी 'विजाणह-विजानाति' जानते हैं और 'विनाय-विज्ञाय' जानकरके 'जेण-येन' जो कारण से वह मुनि 'न जायई-न जायते' संसारमें उत्पन्न नहीं होता है एवं 'न मिज्जइ-न म्रियते' मरता भी नहीं है अर्थात् जन्म, जरा और मृत्युरहित होकर मुक्त हो जाता है।७। ભવિષ્ય અને વર્તમાનકાળ સંબંધી કર્મોથી રહિત થઈને મોક્ષ પ્રાપ્ત ४२ छ. ॥९॥
'अकुब्वओ' या
शम्हा-'अकुबओ-अकुर्वतः' ५५ - ४२वावा भुनिन 'णवंनवम्' ज्ञानावरशीय विगेरे नवीन भनी ५ णत्थि-नास्ति' थत नया २५ है 'से-स' व 'महावीरे-महावीरः' महावी२ ५३५ 'कम्म-कर्म' मा
रना भ२ तथा 'नाम-नाम' भनिने ५४५ 'विजाणइ-विजानाति' onो छ तथा 'विन्नाय-विज्ञाय' लयीन 'जेण-येन रथी त अनि 'न जायई-न जायते' असा२i sपन्न थता नथी, तथा 'न मिज्जइ-न म्रियते' भरता પણ નથી. અર્થાત્ જન્મ, જરા, અને મૃત્યુ રહિત થઈને મુક્ત બની mय छ, ॥७॥
For Private And Personal Use Only