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समयार्थबोधिनी टीका प्र.श्रु. अ. १४ ग्रन्थस्वरूपनिरूपणम् विजानाति-सम्यगवच्छति । यदेव वस्तु पूर्वमनिरीक्षणीयमासीत्, तदेवाऽधुना कारणसाफल्येन निरीक्षणातिसरलं भवति । या मार्गदर्शकः पुरुषो गाढान्धकाराहतायां निशीथिन्यां किमप्यपश्यन् मागं न जानाति, स एव समुपसर्पति सूर्ये तदा लोकालोकिते दिग्विभागे समवगच्छति मार्गम् , एवमेव सर्वज्ञ वचनपकाशेन समुपलब्धसम्यग्रज्ञानो जीव: सन्मार्गम् आगच्छतीति भावः ॥१२॥ मूलम्-एवं तु सेहे वि अपुट्रधम्मे धम्मं न जागाइ अबुज्झमाणे।
से कोविएं जिणवयणेणं पंच्छासूरोदएपौसइ चैक्खुणेव॥१३॥ छाया-एवं तु शिष्योऽप्यपुष्टधर्मा, धर्म न जानात्यबुद्धयमानः ।
स कोविदो जिनवचनेन पश्चात्सूर्योदये पश्यति चक्षुषेव ॥१३॥ इस प्रकार जो वस्तु पहले नेत्रों से अगोचर थी, वही अब पूरे कारण मिलने पर सुनिरीक्ष्य बन जाती है। ___ तात्पर्य यह है कि जैसे मार्गदर्शक पुरुष सघन तिमिर से व्याप्त अंधेरी रात्रि में कुछ भी न देख पाता हुआ मार्ग को भी नहीं जानता है। किन्तु वही मार्गदर्शक सूर्यके उदित होने पर और समस्त दिक समूह में उसके प्रकाश का प्रसार होने पर मार्ग देखने लगता है। इस प्रकार जिस जीव को सर्वज्ञ के वचनों से सम्यग् ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है। वह सन्मार्ग को जानने लगता है ॥१२॥
'एवं तु सेहे वि अपुदुधम्मे' इत्यादि।
शब्दार्थ-एवं तु-एवंतु' इसी प्रकारसे अर्थात् कोई द्रष्टा अन्धकार युक्त रात्री में मार्गको देखता नहीं है परंतु सूर्योदय से अन्धकार दूर જેવાય તેવી હતી. તેજ હવે કારણ મળવાથી સારી રીતે જોઈ શકાય તેવી मनी लय छे.
કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે–જેમ માર્ગ દર્શક પુરૂષ ગાઢ અંધારાથી ઘેરાયેલી અંધારી રાત્રીમાં કંઈ પણ જોઈ ન શકતાં માર્ગ પણ જોઈ શકતે નથી. પરંતુ એજ પુરૂષ સૂર્ય ઉદય થાય અને સઘળી દિશાઓમાં સૂર્યને પ્રકાશ પ્રસરિત થઈ જતાં માર્ગ જેવા મંડે છે. એ જ પ્રમાણે જે જીવને સર્વરના વચનેથી સમ્યફ જ્ઞાનની પ્રાપ્તિ થઈ જાય છે, તે સન્માર્ગને જાણવા લાગે છે. ૧૨ા __ 'एवं तु सेहे वि अपुदुधम्मे' या
शाय-'एवं तु-एवं तु' मा प्रमाणे अर्थात द्रष्टा अध. યુક્ત રાત્રે માર્ગને જોઈ શકતું નથી પરંતુ સૂર્યને ઉદય થતાં અંધકાર દૂર
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