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सूत्रकृताङ्गसूत्रे ___ अन्वयार्थः-(मणुए) मनुजा-साधुः (अणोसिए) अनुपितः स्वच्छन्द चारी सन् (गंतकर) नान्तकर-कर्मक्षयकारको न भवति (इइ) इति-इत्येवम् (णच्चा) ज्ञात्वा-सम्पविचार्य (भोसाणं) अवसानम् गुरुकुलनिवासम् तथा (समाहि) समाधिम्-संयमानुष्ठानम् (इच्छे) इच्छेन्-पान्छेत् एनम् (इपियस्स) द्रव्यस्य-भव्यस्य मोक्षगमनयोग्यस्य साधोः यत् (वित्त) वृत्तम्-सर्वज्ञपतियादित संघममार्गम् (ओभासमाणे) अबभासगन्-मिनधर्म प्रकाशयन् (बहिया) बहिःकार दिखलाते हैं-'मोसाण' इत्यादि ।
शब्दार्थ---'मणुए-मनुजः' मनुष्य 'अणोसिए-अनुपिनः' गुरु कुल में निवास न करनेवाला--अर्थात स्वच्छंदाचरण करने से 'शंकरनान्तकरः कर्म का क्षय करनेवाला नहीं है इ-इति' इस प्रकार से 'णचा शात्या' जानकर 'आसुपन्ने-माशुप्रज्ञा' बुद्धिमान पुरुष 'ओसाणंअवसानम् गुरु गच्छ में निवास करने की तथा 'समाहि-समाधिम् संयमानुष्टान करने की इच्छे-इच्छेत्' इच्छा करे इस प्रकार करने से 'दवियस्स-द्रव्यस्य' मुक्तिगमन योग्य साधु के जो 'वित्तं'-वृत्तं सर्वज्ञ प्रतिपादित संयममार्ग को 'ओभासमाणे-अवभासयन्' प्रगट करता हुभा 'बहिया' पहि' गच्छ के बाहर 'ण णिक्कसे-न निष्कसेत्' न नीकले अर्थात् स्वच्छंदाचारी न बने ॥४॥ ___ अन्वयार्थ-मनमानी विचरने वाला अमवस्थित स्वच्छन्दवारी साधु कर्मका क्षय करनेवाला नहीं हो सकता। ऐसा समझ कर और विचार कर साधु गुरुकुल में निवास और संघमानुष्ठान करने की -'ओखाणं' त्यादि
At4-- एणुए-मनुजा' भनु५५ भासिए-अनुषितः' शु३४मा निवास ४२१.पाणी अर्थात २१२७४ मा १२१ ५२पाथी ‘णंतकरे-नान्तश्चरः' मना क्षय शशात नथी. 'इइ-इति' 21 प्रभा ‘णच्चा-ज्ञात्वा' otela 'आसुपन्नेबाशुप्रज्ञः' भुद्धिमान् ५३५ 'आमाण-अवज्ञानम्' शु३३i (नवास १२वानी 'इच्छे-इच्छेत्' ६२७ ४३ २ प्रमले ४२६॥धा 'दवियरस-द्रव्यस्य भुतिमामन योग्य साधुने २ 'वित्त-वृत' सज्ञ प्रतिपान ४२ सयम भागने 'ओभासमाणे-अवभावयन्' प्रगट ४२ थी बहिया-बहिः' गच्छनी महार 'ण णिकसे-न निष्कतेत' न अर्थात् २ २७ दायारी न मने ॥४॥
અયાર્થ–મનસ્વી પર વિચરવાવાળા અરિથર બુદ્ધિવાળે અને સ્વચ્છદાચારી સાધુ કર્મનો ક્ષય કરવામાં સમર્થ થઈ શકતું નથી. આ રીતે સમજીને અને વિચારીને સાધુ ગુરૂકુળમાં જ રહેવાની અને સંયમાનુષ્ઠાર કરવા
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