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समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १२ समवसरणस्वरूपनिरूपणम् २४५ सदसदबक्तव्यम्, अमिलापस्त्वेवम्-अन् जोवः को वेत्ति किंवा ज्ञातेन१, असन् जीवः को वेनि किंवा ज्ञातेन २, सदसन् जीवः को वेत्ति किंवा ज्ञातेन३, अवक्तव्यो जीवः को वैत्ति किंवा ज्ञातेन४, सदरक्तव्यो जीवः को वेत्ति किंवा तेन ज्ञातेन ५, असद रक्तव्यो जीवः को वेत्ति किंवा तेन ज्ञातेन ६ सदसवक्तव्यो जिवः को वेत्ति किंवा तेन ज्ञातेन ७:४१ एवत् अनीवादिभिरपि संयोजनात् त्रिष्टि भेदाः ६३ । अवक्तव्य, सत् अवक्तव्य, असत् अवकाव्य और सत्-असत्-अव. क्तव्य । विकल्पों का उच्चारण इस प्रकार करना चाहिए
(१) जीव सत् है, यह कौन जानता है ? जानने से लाभ भी क्या है ? ___ (२) जीव असत् है, यह कौन जानता है ? जानने से लाभ
भी क्या है ? _ (३) जीव सन् असत् है, यह कौन जानता है ? जानने से लाभ भी क्या है ?
(४) जीव अवक्तव्य है, यह कौन जानता है ? जानने से लाभ भी क्या है?
(५) जीव सत्-अवक्तब्ध है, यह कौन जानता है ? जानने से लाभ भी क्या है?
(६) जीव असत्-अवक्तव्य है, यह कौन जानता है ? जानने से लाभ भी क्या है?
(७) जीव सत् असत् अवक्तव्य है, यह कौन जानता है ? जानने से लाभ भी क्या है ?
(૧) જીવ સત્ છે, એ કોણ જાણે છે ? અને તે જાણવાથી લાભ પણ શું છે? (२) ७१ असत् छ, मे न छ १ भने तपाथी साल शुछ ?
(3) ७१ सतू असत् छ, ते Mणे छ ? भने ते साथी લાભ પણ શું છે?
(૪) જીવ અવક્તવ્ય છે, એ કેણ જાણે છે અને તે જાણવાથી લાભ પણ શું છે ?
(૫) જીવ સત્ અવક્તવ્ય છે, તે કે જાણે છે? અને તે જાણવાથી લાભ પણ શું છે?
(૬) જીવ અસત્ અવક્તવ્ય છે. તે કોણ જાણે છે? અને તે જાણવાથી લાભ પણ શું છે?
| (૭) જીવ સત્ અસત્ અવક્તવ્ય છે, તે કોણ જાણે છે અને તે જાણવાથી લાભ પણ શું છે?
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