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समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १३ याथातथ्यस्वरूपनिरूपणम् ३६५ छाया--एतान् मदान् विवियु धीरा, न तान् सेवन्ते सुधीरधर्माणः ।
ते सर्वे गोत्रापगता महपथ, उच्चामगोत्रां च गति व्रजन्ति ॥१६॥ अन्वयार्थः--(धीरा) धीराः-परमा वेत्तारः (एयाई) एतान्-जात्या. दिविषयकान् (मयाई) मदान् (विगिच) विनियुः-पृथक कुर्यु:-स्वात्मनः सका. शात निःसारयेयुः ते खल्लु धीराः (सुधीरधम्मा) सुधीरधर्माणः-तीर्थक प्रति'एयाइं मयाइं विनिंच धीरा' इत्यादि ।
शब्दार्थ-धीरा-धीराः' परमार्थतत्वको जानने वाला धीर पुरुष 'एयाई-एतान्' इन जात्यादि 'मयाई-मदान्' मदस्थानों को विनिंचपृथक्कुर्युः' अपने से दूरकरे ऐसा करने वाले पुरुष 'सुधीरधम्मा-सुधीरधर्माणा' तीर्थ कर के द्वारा प्रतिपादित धर्म का पालन करने वाले हैं 'ताणि-तान्' इन मदस्थानों को 'ण सेवेति-न सेवन्ते' सेवन नहीं करते हैं 'ते-ते' वे 'सव्यगोत्तावयगा-सर्वगोत्रापगता सब प्रकार के मद स्थानों को त्याग करने वाले 'महेसी-महर्षयः' महर्षि अर्थात विशेष प्रकार के तप से पाप को द्रकरने वाले 'उच्च-उच्चाम्' सर्वो. स्कृष्ट 'अगोत्तं च-अगोत्राच' गोत्र, जाति आदि मद से रहित ऐसी 'गई-गतिम्' मोक्षरूप गति को 'वयंति-व्रजन्ति' गमन करता है ॥१६॥ ____ अन्वयार्थ--धीर मेधावी परमार्थवेत्ता साधु पूर्वोक्त जाति कुलादि विषयक मदों को अपने अन्दर से निकाल दे। ऐसे धीर साधु तीर्थकर
'एयाई मयाई विगिच धीरा' त्यात
शाय - 'धीरा-धीराः' ५२मा वाचाया धीर ५३५ 'एयाइ'एतान' म ति विगेरेना 'मयाई-मदान्' भस्थानाने 'विनिंच-पृथक्कुयुः चातानी इ२ ४२ सेम ४२वावाणे५३५ 'सुधीरधम्मा-सुधीरधर्माणः' तीय. ४२। द्वारा प्रतिपादन ४२यामा मावस भनु ५.४२ापामा छ. 'ताणि. तान्' मा मस्थानेने 'ण सेवंति-न सेवन्ते' सेवन ४२ता नथी. 'ते-ते तमे। सव्वगोत्तावयगा-सर्वगोत्रापगताः' च्या प्रारना महत्थानाने त्यास १२वा. वा 'महेसी-महर्षयः' महर्षि अर्थात विशेष प्रारना त५थी पापन र ४२वावाणा 'उच्च -उच्चाम्' समिट अोतंच-अगोत्राञ्च' मात्र, तिवरे भाथी २हित मेवी गई-गतिम्' भे.१३५ गतिमा 'वयंति-व्रजन्ति' गमन ४२ छ. ॥१६॥
અન્વયાર્થ—ધીર મેધાવી પરમાર્થ વેત્તા સાધુ પૂર્વેક્ત જાતિકુલ વિગેરે સંબંધી અને પિતાની અંદરથી દૂર કરે એવા ધીર સાધુ તીર્થ કરે પ્રતિપા
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