________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सूत्रकृतामसूत्र बम-सचं असचं इति चिंतयंता,
असाहु साहु त्ति उदाहरता। जे में जैणा वेणइया अणेगे,
पुट्टा वि भावं विणई सु णामं ॥३॥ गया-सत्यमसत्य मिति चिन्तयन्तोऽसाधु साधु रित्युदाहरन्तः ।
य इमे जना वैनयिका अनेके, पृष्टा अपि भावं व्यनेषुनीम ॥३॥ सकते । इस प्रकार अज्ञान पक्ष का अवलम्बन लेने के कारण ये विचार म. करके मृषावाद करते हैं ॥२॥
'सच्चं असच्च' इत्यादि।
शब्दार्थ-'सच्च-सत्यम्' सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र रूप मोक्षमार्ग को 'असच्च-असत्यम्' यह ऐसा नहीं है 'इति-इति' इस प्रकार 'चिंत.
ता-चिन्तयन्तः' मनमें मानते हुए तथा 'असाहु-असाधुम्' साधुके प्राचारसे रहित हैं उनको 'साहु-साधुः' यह साघु है 'त्ति-इति' इस अचार 'उदाहरंता-उदाहरन्तः' कहते हुए 'जे मे-ये हमे' जो ये 'अणेगे
अनेके अनेक 'वेणझ्या जणा-वैनयिका जनाः विनयवादि मतावलम्बी मनुष्य हैं वे लोग 'पुट्ठोवि-पृष्टा अपि' कोई जिज्ञासु के द्वारा पूछने पर 'मी 'भावं नाम-भावं नाम' विनयसे ही मोक्ष होता है इस प्रकार 'विणइंसु-व्यनेषुः' कहते हैं ॥३॥
આ અજ્ઞાનપક્ષનું અવલમ્બન લેવાને કારણે તેઓ વાસ્તવિકને વિચાર ન * કરતાં મૃષાવાદ જ કરે છે. પરા . 'सच्च अमच्च" या
साथ-सच्च-सत्यम्' सत्य मेवा सभ्य ४शन ज्ञान यात्रि ३५ माक्ष भाग २ 'असच्चं-असत्यम्' मा भाग ३ नथी. 'इति-इति' मे प्रभारी चितयंता-चिन्तयन्तः' मनमा मानाने तथा 'असाहु-असाधुम्' २।
पाया२ बिनाना हाय तेयाने 'साहु-साधुः' मा साधु छे. 'त्ति-इति' मा प्रभारी उदाहरता-उदाहरन्तः' पापा 'जे मे- ये इमे' २ . 'अणेगेभनेके भने 'वेणइया जणा-वैनयिका जनाः' विनय पाही भतने अनुसरनाशमा छे तमे। 'पुढावि-पृष्टा अपि' । सुमे पूछ। छत पर 'भावं नाम-भावं नाम' विनयथा १ भाक्ष प्राप्त थाय छ मे प्रमाणे विणसुध्यनेषुः' उता २७ छ ॥3॥
For Private And Personal Use Only