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सूत्रकृताङ्गसौ ___ अन्वयार्थ–'ते' ते-तीर्थकरगणधरादयः ‘इह' इह-अस्मिन् 'लोगसि' लोके चतुर्दशरज्ज्वात्मके (चक्खु) चक्षुः-चक्षुरिव चक्षुः सर्वपदार्थप्रदर्शकत्वात् (उ) तु तथा-(णायगा) नायका:-नेतारः प्रधाना, अत एव ते (पयाणं) प्रजानां पाणिनाम् (हित) हितम्-इह परलोके च हितकरम् (मग्ग) मार्ग-मोक्षमार्गम् (अणुसासंति) अनुशासन्ति-कथयन्ति, किश्च-(लोए) लोकः यथा-यथारूपेण शाश्वतो वर्तते (तहा तहा) तथा तथा-तेन तेन रूपेण तं-लोकम् (सासयं) शाश्वतम् (आहु) कथयन्ति (माणव) हे मानव ! (जंसि) यस्मिन् लोके (पया) प्रजा:-प्राणिनः (संपगाढा) संप्रगाढा:-सं सम्यक्तया प्रकर्षेण व्यवस्थिताः सन्तीति ॥१२॥ नायक अर्थात् नेता होने से प्रधान-अर्थात् सर्व श्रेष्ठ है अतएव वे 'पयाणं-प्रजानां प्राणियों के हित-हितम्' इसलोक एवं परलोक में हित. करनेवाला 'मग्गं-मागे' मोक्षमार्ग को 'अणुसाप्तंति-अनुशासन्ति' बताते हैं और 'लोए-लोकः' चतुर्दशरज्ज्वात्मक अथवा पंचास्तिकायरूप यह लोक जिस जिस प्रकारसे शाश्वत है 'तहा तहा-तथा तथा' उस उस प्रकारसे 'सासयं-शाश्वतम्' सर्वकाल बने रहने से नित्य 'आहु-आहुः' कहते हैं 'माणव-हे मानव' हे मनुष्य 'सि-यस्मिन्' जिस लोकमें 'पया-प्रजा' प्राणी-जीव 'संपगाढा-संप्रगाढा' नारक तिर्यंच मनुष्य
और देव पनेसे व्यवस्थित हैं । १२॥ ___ अन्वयार्थ तीर्थंकर आदि इस लोक में चक्षु के समान हैं। कामकप्रधान हैं, प्राणियों को हितकारी मार्ग का उपदेश देते हैं । जिस रूपसे बेभा 'चक्खु-चक्षुः नत्र सरमा छे. 'उ-तु' तथा 'णायगा-नायकाः' नाय से
नता पाथी प्रधान अर्थात स श्रेष्ठ छे. मतमेव तेया 'पयाण-प्रजानी' प्राणियोना हित-हितम्' 24tal भने ५२i & ४२वाणा 'मग्गंमार्गम्' भाक्ष भागने 'अणुसासंति-अनुशासति' मत. छ. मने 'लोए-लोकः' ચૌદ રજવાભક અથવા પંચાસ્તિકાય રૂપ આ લેક જે જે પ્રકારથી શાશ્વત -नित्य छ 'तहा तहा-तथा तथा' से प्रारथी 'सासयं-शाश्वतम्' सब 10 विधमान २७वाथी नित्य 'आहु-आहुः' ४९ छ. 'मणव-हे मानव' हे भनुभ्यो 'जसि-यस्मिन्' २ai 'पया-प्रजाः' - 'संपगाढा-संप्र. गाढाः' ना२४, तिय"य, मनुष्य भने हेवपणाथी व्यवस्थित छ. ॥१२॥
અન્વયાર્થ-તીર્થકર વિગેરે આ લેકમાં નેત્ર સરીખા છે. નાયકપ્રધાન છે. પ્રાણિયને હિતકારી માર્ગને ઉપદેશ આપે છે. જે રીતે લેકશા
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