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समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १३ याथातथ्यस्वरूपनिरूपणम् ३७ ___ अन्वयार्थ:-(जे) यः कश्चिदपि (नायए) जात्या (माइणे) ब्राह्मणो भवति (वा) वा-अथवा (खत्तिए) क्षत्रियः-३६ शाकुवंशीयः (तह) तथा (उग्गाले) उग्रपुत्र:-उग्रवंशीयः (तह) तथा (लेच्छई वा) लेच्छको वा भवति (जे) य: (पन्नइए) प्रवनितः-गृहीतसंयमः (परदत्तभोई) परदत्तभोजी-निरपण्डिा . हारकः संयमानुष्ठानशीलः (जे) यः (गोत्ते) गोत्रे (माणबद्धे) मानबरे, अमिमानस्थानभूते समुत्पन्नः (ण थमा) न स्तभाति-अभिमानं न करोति । माति कुलमदं यो न करोति स एव सर्वज्ञमार्गानुगामी भवतीति भावः ॥१०॥ क्षत्रिय विशेष है 'जे-य:' जो 'पन्चहए -प्रवजित' संयम को धारण करने के लिये दीक्षित होता है और 'परदत्तभोई-परदत्तभोजी' अन्य के द्वारा प्रदत्त निरवा आहारको ग्रहण करता है तथा 'जे-या जो पुरुष 'गोत्ते-गोत्रे' वंशका 'माणबद्धे-मानषद्धे' अभिमान योग्य स्थानमें उत्पन्न होने पर भी ण थन्भह-न सभ्नाति' अभिमान नहीं करता है वही सर्वज्ञके मार्ग में प्रवृत्त होता है ॥१०॥ __अन्वयार्थ जो कोई भी जाति का ब्राह्मण हो या क्षत्रिय हो या उग्रपुत्र क्षत्रिय जाति विशेष हो या लिछवी जाति का हो वह दीक्षा ग्रहण कर निर्दोष भिक्षा का आहार करनेवाला संयम का अनुष्ठान कर्ता होता है एवं जो उच्च कुल में उत्पन्न होने पर भी जाति कुल का अभिमान या मद नहीं करता है वही सर्वज्ञ पथ का अनुगामी होता है ॥१०॥ तमा 'लेच्छईवा-लेच्छ कोवा' २७ गतान क्षत्रीय विशेष छे. 'जे-यः'२ 'पवइए-प्रत्रजितः' सयभने पा२३ ४२१॥ भाटे दीक्षित थाय छे. अने 'परद तभोई-परदत्तभोजी' भी द्वारा मा५मा आवस नि२२५ माहारने असा ४३ तथा 'जे-यः' २ ५३५ गोते-गोत्रे' शथी 'माणबद्धे-मानबद्धे' मलि. भान योग्य स्थानमा पन या छतां ५५ 'ण थब्भइ-न स्तनाति' मनिभान કરતા નથી. એ જ પુરૂષ સર્વસના માર્ગમાં પ્રવૃત્તિ કરવાને ગ્ય બને છે.
જેને અન્વયાર્થ–કોઈ પણ ભલે જાતિથી બ્રહ્મણ હોય, ક્ષત્રિય હેય, ઈક્ષવા કવંશીય હોય અને ઉગ્રપુત્ર ક્ષત્રિય જાતિ વિશેષ હોય, અગર બીછવી જાતિના હોય તે દીક્ષા ધારણ કરીને નિર્દોષ ભિક્ષાને આહાર કરનાર અને સંયમનું પાલન કરનાર હોય અને જે ઉચ્ચકુળમાં ઉત્પન્ન થઈને પણ જાતિ કુલનું અભિમાન અથવા મદ કરતા નથી એજ સર્વજ્ઞ પ્રણીત માર્ગનું અનુસરણ કરવાવાળા કહેવાય છે. ૧૧
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