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सूत्रकृतागसूत्रे परमार्थती जानाति अहङ्कारी प्रवचन मर्मज्ञो न भवतीति । अभिमानवान् पुरुषः एकान्ततो मोहातः संसारमेव परिभ्रमति ॥९॥
सर्वेष्वपि मदेषु जातिमद एवं प्रबल इति तन्निराकत्तुं सूत्रकारो ब्रवीति 'जे माहणे' इत्यादि। मूलम्-जे माहणे खत्तिए जायए वा,
त हुग्गपुत्ते तह लेच्छई वा। जे पव्वइए परदत्तभोई,
गोत्ते ण 'जे थैभइ माणबद्धे ॥१०॥ गया-यो ब्राह्मगः क्षत्रियो जात्या वा, तथोग्रपुत्रस्तथा लेच्छको वा। ____या प्रवजितः परदत्तभोजी, गोत्रेन यः स्तभ्नात्यभिमानबद्धे ॥१०॥ को पढ कर भी और उनके अर्थ को जानता हुआ भी वास्तव में सर्वज्ञ के मत से अनभिज्ञ है। ____ तात्पर्य यह है कि अभिमानवान् पुरुष एकान्ततः मोह से आवृत्त होकर संसार में परिभ्रमण करता है ॥९॥
संघ मदों में प्राय: जालिमद् प्रपल होता है, अतएव अब उसका निराकारण करने के लिए सूत्रकार करते हैं-'जे माहणे' इत्यादि।
शन्दर्थ- 'जे-य:' जो पुरुष 'जायए-जात्या' जाति से 'माहणोब्राणः' ब्राह्मण है 'वा-वा' अथवा 'खत्तिए-क्षत्रियः' इक्ष्वाकु वंशके क्षत्रीय जातिका है 'तह-तथा' तथा 'उग्गपुत्ते उग्रपुत्रः' उग्रपुत्र-क्षत्रिय जाति विशेषका है 'तह-तथा' 'लेच्छई वा-लेच्छ को वो' लेच्छक जाति का જ્ઞાનને મદ કરે છે, તે શાસ્ત્રને ભણીને પણ અને તેના અર્થને જાણવા છતાં પણ વાસ્તવિક રીતે સર્વજ્ઞના મતથી અજ્ઞાત છે.
કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે–અભિમાનવાળે પુરૂષ એકાન્ત! મહિને વશ થઈને સંસારમાં ભટકે છે. પહેલા
- દરેકને પ્રાયા જાતિમઃ પ્રબળ હોય છે. તેથી હવે તે બતાવવા માટે सूत्रकार 'जे माहणे' त्याहि गाथा . छे.
Avat-'जे-यः' ने पु२५ ‘जायए-जात्या' तथा 'माहणो-ब्राह्मणः' ung छे. 'वा-वा' या 'खत्तिए-क्षत्रियः' वा १य क्षत्रीय तना छे. 'वह-तथा' तथा 'उग्गपुत्वे-उग्रपुत्रः' अधुत्र-क्षत्रिय ती विशेषता छ. 'तह-तथा'
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