________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सूत्रकृताङ्गसूत्र 'जे भासवं भिवखू सुसाहुवाई' इत्यादि।
शब्दार्थ-'जे भिक्खू-ध: भिक्षुः' जो साधु 'भासवं-भाषावान्' भाषा के दोष एवं गुण को जानने वाला होने से सुंदर भाषा बोलने वाला हो तथा 'सुसाहुवाई-सुसाधुवादी' सुंदर मिष्ट भाषी हो 'पडि. हाणव-प्रतिभानवान् , औत्पत्त्यादिबुद्धि गुण से अच्छी प्रतिभावाला हो तथा 'विसारए-विशारदः' विशारद अर्थात् अनेक प्रकार के अर्थ को प्रकाशन करने में समर्थ हो तथा 'भागाढपन्ने-आगाढप्रज्ञः' विशेष प्रकार से, प्रज्ञाशाली हो एवं 'सुमाविअप्पा-सुभावितास्मा' धर्म की भावना से जिसका हृद्य वासित है वही साधु है परंतु मैं ही ज्ञानी हुँ ऐसा अभिमान करने वाला पुरुष 'अण्णं जण-अन्यं जनं' दूसरे को 'पण्णया-प्रज्ञया' अपनी बुद्धि की प्रतिभासे 'परिहवेज्जा-परिभवेत् तिरस्कृत करता है ऐसा पुरुष साधु नहीं कहा जासकता है ऐसा पुरुष केवल साध्वाभास ही है ॥१३॥
अन्वयार्थ-जो साधु भाषा का गुण दोष जानने से सुन्दरभाषा भाषी है । एवं सुसाधुवादी पूर्ण प्रतिभाशाली है और औत्पत्ति
'जे भासवं भिक्खु सुसाहुवाई' या
शब्दार्थ--'जे भिखू-यः भिक्षुः' रे साधु 'भासव-भाषावान्' नापाना દેશે અને ગુણને જાણવાવાળા હેવાથી સુંદર ભાષા પ્રયોગ કરનાર सय तथा 'सुसाहुवाई-सुसाधुवादी' सु४२ मा मालपापा डाय 'पडिहाणवं -प्रतिभानवान्' भीत्पत्ति विगेरे मुद्धिना गुथी सु२ प्रतिभाशाली डाय तथा 'विसारए-विशारदः' विशा२६ अर्थात् भने ४२न। म २ प्रगट १२. पामा समर्थ य तथा 'आगाढपन्ने-आगाढप्रज्ञः' विशेष (२थी प्रज्ञाशी डाय भने 'सुभाविअप्पा-सुभावितात्मा' धनी मानाथी भर्नु वासित હેય એજ સાધુ કહેવાય છે. પરંતુ હુંજ જ્ઞાની છું એ પ્રમાણેનું અભિમાન ४२॥णी पु३५ 'अण्णं जण--अन्यम् जन' मन्यने 'अण्णया-प्रज्ञया' पातानी मुद्धिनी प्रतिमाथी 'परिहवेज्जा- परिभवेत्' ति२२कृत ४२ . मेवः ५३५ साधु કહી શકાતું નથી. એ પુરૂષ કેરળ સાધાભાસજ કહેવાય છે. જેવા
અન્વયાર્થ–જે સાધુ ભાષાના ગુણ દેષને જાણવાથી સુંદર ભાષા બેલનાર છે, તથા સુસાધુવાદી અને પૂર્ણ પ્રતિભાશાલી છે, અને નિકી
For Private And Personal Use Only