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समयार्थबोधिनी टीका प्र.अ. अ. १२ समवसरणस्वरूपनिरूपणम्
मूलम्-अणोवसंखाइ ति ते उदाह,
अद्वे से ओभासइ अम्ह एवं । लैंवावसंकी ये अणागएहिं,
णी किरियमाहंसे अकिरियवादी ॥४॥ छाया-अनुपसंख्ययेति ते उदाहुः, अर्थः स्वोऽभासतेऽस्माकमेवम् ।
लवापशङ्किनचानागते, नोक्रिया माहुरक्रियावादिनः ॥४॥ आशय यह है कि सत्य को असत्य और असाधु को साधु मानते हुए वैनायिक प्रश्न करने पर विनय को ही मोक्षमार्ग कहते हैं ॥३॥ 'अणोवसंखाइति ते उदाहु' इत्यादि।
शब्दार्थ-ते-ते' वे विनयवादिलोग 'अणोवसंखाइ-अनुपसं. ख्यया' वस्तुतत्त्वका विचार किये विना ही 'त्ति-इति' इस प्रकार 'उदाहू -उदाहुः कथन करते रहते हैं 'सट्टे-स्वोऽर्थः' वे कहते हैं कि अपने प्रयोजन की सिद्धि 'अम्ह-अस्माकम्' हमको 'एवं-एवम्' विनयसे ही होती है इस प्रकार 'ओभासइ-अवभासते' हमे दिखता है तथा 'लवावसंकी -लवावशंकिनः' तथा बौद्ध मतानुयायी कि जो कर्मबन्धकी शंकावाले हैं वे लोग और 'अकिरियावादी-अक्रियावादिनः' अक्रियावादी 'अणागएहि-अनागतः' भूत और भविष्य के द्वारा वर्तमानकी असिद्धि मान कर 'किरियं-क्रियां' क्रिया को 'णो आहंसु-नो आहुः' निषेध करते हैं॥४॥ અસાધુને સાધુ માનનારાએ વનચિકે પ્રશ્ન કરવામાં આવે ત્યારે વિનયને જ મક્ષ માગ કહે છે. ૩
'अणोवसंचाइ ति ते उदाहु' त्याल
शहाथ-'ते-ते' से विनयभतने अनुसना at 'षणोवसंरवाइ -अनुपसंख्यया' परतुतत्वना विया२ ४ा विना 'त्ति-इति' से प्रभाव 'सवाह-उदाहुः' पृथन ४२॥ २ छे. 'सटे-स्वोऽर्थः' तमे ४ छ -सभास प्रयोजना सिद्धि 'अम्ह-अस्माकम् अभने एवं-एवम्' विनयी ४ थाय छे. मा प्रमाणे 'ओभासइ-अवभासते' अभने माय छे. तया 'लवावसंकी-उवापशंक्निः ' मोर भतने मनुसरनारा। रे। भ नी 141 को ले भने 'अकिरियावादी-अक्रियावादिनः' मठियावाही at 'अणागएहि' अनागतैः' भूत भने भविष्य द्वारा पत भाननी मसिद्धि मानीने 'किरियं क्रियाहियानी 'णो आहेसु-नो बाहुः निषेध ४२ 2. ॥४॥
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