________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
समयार्थबोधिनी टीका प्र.श्रु. अ. १२ समवसरणस्वरूपनिरूपणम् २३९ जान लेना चाहिये । उसी के निरूपण के लिए यह अध्ययन है। इसका प्रथम सूत्र है-'चत्तारि' इत्यादि ।
शब्दार्थ-'इमाणि-इमानि' ये लोक में प्रसिद्ध ऐसे 'चत्तारिचत्वारि' चार 'समोसरणाणि-समवसरणानि' परतीर्थिकों का समूह है 'जाई-यानि' जो परतीथिकों के समूह 'पावादुया-प्रावादुकाः' प्रज ल्पक होकरके 'पुढो वयंति-पृथक्वन्ति' वे चारों पृथक पृथक् सिद्धांत का प्रतिपादन करते हैं। कोई परतीर्थिक 'किरियं-क्रिश' क्रिया को अर्थात् जीवादि पादार्थ का अस्तित्त्वरूप 'आहंसु-आहुः' कहते हैं यह पहला समवसरण है १ कोई कोई 'अकिरियं-अक्रिया' जीवादि पदार्थ नहीं है इत्यादि प्रकारसे 'आहेतु-आहुः' कहते हैं। यह दूसरा समवस. रण है २ एवं कोई 'विपत्ति'-विनयमिति' केवल विनयसे ही मोक्ष होता है ऐसा 'तइयं-तृतीयं तीसरा समवसरण है 'चउत्थमेवचतुर्थमेव' और चौथा परतीर्थिक 'अन्नाणं-अज्ञानम्' अज्ञानसे ही मोक्ष होता है इस प्रकार 'आहुः कथयन्ति' कहते है, यह चौथा समवसरण है ये पूर्वोक्त चारों परतीर्थिकमावादुक-अर्थात् वागविलास करने वाले हैं वे लोग वृथावाद करते हैं ॥१॥ માટેજ આ અધ્યયનને પ્રારંભ કરવામાં આવે છે. આ અધ્યયનનું પહેલું सूत्र या प्रमाणे छे. 'चत्तारि' या ___evat:-'इमाणि-इमानि' मा भने प्रसिद्ध मेवा 'चत्तारि-चत्वारि' यार 'समोसरणाणि-समवसरणानि' ५२तीय जन समूह छ. 'जाई-यानि' २ ५२तीयानो समुदाय 'पावादुया-प्रावादुकाः' ures 25 'पुढो वयंतिपृथक् वदन्ति' से प्यारे हो । १२ सिद्धांतनु प्रतिपाहन ४३ छ,
परतीथि 'किरिय-क्रियां' याने अर्थात पहाना मस्तित्व. ३५ 'आइंसु-बाहुः' । छे. मा पड समक्स२५ छे. १ 'अकिरिय-अक्रियां' पाहि यहाथ नथी विशेष प्राथी 'आहंसु-आहुः' . भाभी समयस२९ छे. २ का प्रमाणे । 'विणयत्ति-विनयमिति' ण विनयथी । माक्ष प्रास थाय छ. को प्रमाणे तइय-तृतीय' त्रीने । भत 'आहः' छे. मात्री समवसर छे. ३ 'चउत्थमेव-चतुर्थमेव' भने याथा परतीथि 'अन्नाणं-अज्ञानम् अज्ञानथी०४ भाक्ष प्राप्त थाय छे मा પ્રમાણે “અહુર” કહે છે આ ચોથું સમવસરણ છે. ૪ આ ઉપરથી કહેવામાં આવેલ ચારેય પરતીર્ષિકે પ્રાવાદુક અર્થાત, વાણીને વિકાસ જ માત્ર કરવાવાળા હોય છે. એ લેકે ફગટજ વાણુને વિલાસ કરતા રહે છે. એટલે કે કેવળ બડબડાટ જ કરે છે. પેલા
For Private And Personal Use Only