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प्रकरण पहिला
के (स्थानशाह के जाशाह के समय चाहें
झान का प्रभाव पड़ा, और कई विद्वान् एवं लेखक भी पैदा हुए। उन्होंने साधारण व्यक्तियों का जीवन पढ़ा, तो उनके मन में यह भावना पैदा होना स्वाभाविक है कि हमारे धर्म स्थापक गुरु श्रीमान् लौंकाशाह का जीवन आज पर्यन्त भी अन्धेरे में क्यों ? हमें भी इनका सुन्दर जीवन चरित्र बनाना चाहिए यह विचार कर लौंकाशाह का जीवन चरित्र लिखने तो बैठे। परन्तु कोई भी कार्य प्रारंभ करने के पहिले उसे सर्वांग सुन्दर बनाने के लिये तद्विषयक सामग्री की जरूरत रहती है, उनके ( स्थानक मार्गी समाज के ) पास इसका सर्वथा अभाव था। क्योंकि लौंकाशाह के जीवन चरित्र के विषय में जो कुछ आधार प्रमाण मिलते हैं वे लौकाशाह के समकालीन उनके प्रतिपक्षियों के लिखे हुए ही मिलते हैं और ये प्रमाण चाहें सर्वाश सत्य भी क्यों न हों परन्तु स्थानकमार्गी समाज का उन पर इतना विश्वास नहीं कि वे इन प्रमाणों को सर्वाश सत्य समझें। हाँ! लौकाशाह के सम सामयिक पं० लावण्य समय. उ० कमल समय और बाद लोकाशाह के करीब ३०-४० वर्षों में यति भानु: चन्द्र ने कई चौपाइयां लिख लौंकाशाह का अस्तित्व स्थायी अवश्या रक्खा है। .. लौकाशाह के पश्चात् प्रायः १०० वर्षों में लौंका मत के अनुयायी बहुत से श्रीपूज्य या यति * लौंकाशाह के मत का
® वाड़ीलाल मोतीलाल शाह की ऐ० नो• के पृष्ट ५९ के लेखाsनुसार कागच्छ के पूज्य मेघजोस्वामी ने ५०० साधुओं के साथ भाचार्य विजय हीर सूरिजी के पास जैन दीक्षा स्वीकार की थी। और उपाध्याय धर्मसागरजी के मतानुसार पूज्य मेघजी के अलावा पूज्य,
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