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प्रकरण एकवीसवाँ
१६८ पड़ा है। इसी तरह यदि लौंकाशाह का भी हाल हुआ हो, तो हम तो कुछ नहीं जानते, पर यह बात स्वयं स्वामी मणिलालजी ने अपनी "प्रभुवीर पटावली” के पृष्ठ १७८ में लिखी है उस बात पर जरा गौर से विचार करो। अब हम यह बतावेंगे कि स्थानकमार्गी यद्यपि अपने को लौंकाशाह के अनुयायी बताते हैं परन्तु वास्तव में ये किनके अनुयायी हैं ?
* देखो प्रभुवीर पटालि पृष्ट १७८ पर
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