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aferशाह ने क्या किया ?
विना समझे लौं० स्था० इसका विरोध कर शासन का मूलोच्छेदन करने का लौकाशाह ने उन्नीसवाँ कार्य किया ।
( २० ) जैन धर्म में समवसरण, वरघोड़ा महोत्सवादि पब्लिक के कार्यों से तीर्थङ्कर गोत्र बन्धना बतलाया है । क्योंकि इन जनरल कार्यों से जैनों के अलावा अजैनों पर भी धर्म का बड़ा भारी प्रभाव पड़ता है जिससे सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है । प्रायः ऐसे महोत्सव दानोत्व वीरता और मन के हुलास से ही होते हैं । पर अज्ञात लौंका० ने इसका भी निषेध कर कंजूसों की भरती बढ़ाकर अजैन कर्मोपाजन करने का यह बीसवाँ काम किया ।
(२१) जिन प्रतिमा और मन्दिरों के प्राचीन शिला लेखोंसे जैनधर्म की प्राचीनता सिद्ध होती है, परन्तु प्रतिमा का निषेध कर शिलालेखादि प्राचीन साधनों को छोड़ कर जैन धर्म की प्राचीनता पर कुच फिराना चाहा । लौंकाशाह ने यह जैनधर्म का इतिहास का द्रोह करने का एक्कीसवाँ काम किया ।
इत्यादि - ऐसे २ अनेक कार्य हैं जिनका लौकाशाह ने बिना सोचे समझे विरोध कर जैन धर्म के अन्दर एक उत्पात खड़ा कर दिया ।
फिर भी प्रसन्नता की बात है कि लौंकाशाह के बाद आपके अनुयायियों में कई लोग संशोधक भी हुए कि जिन्होंने जैनागमों का अवलोकन कर असत्य मार्ग को त्याग सत्य मार्ग को स्वीकार किया जिसमें पूज्य मेघजी, पूज्य श्रीपालजी, पूज्य श्रानन्दजी आदि सैकड़ों साधुओं का नाम मशहूर है इसी कारण स्वामि लवजी धर्मसिंहजी के अनुयायियों ( ढूंढियों) में भी वीर बुटे
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