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जैनाचार्य श्री हेमविमलसूरीश्वरजी
और
लौंकामत के साधु
ऋ० हाना, ऋ० श्रीपति, ऋषि गणपति प्रमुख लुङ्कामतमुपास्य श्री हेमविमलसूरि पार्श्वे मत्रज्य तन्निश्रयाना चारित्र भागो बभूवांस
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"पट्टावली समुचय पृष्ट ६८
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आचार्य हेमविमल सूरि का समय लौंकाशाह के देहान्त के बाद ४०-४२ वर्ष का ही है पर इस नये मत में सब जातियों को दीक्षा देने की छूट होने से अथवा योगोद्वाहनादि विशेष क्रिया न होने से और इन वर्षों में एकाध दुष्काल पड़नेसे इस नूतन मत में साधुओं की संख्या ५०६० के करीब पहुँच गई थी, पर आचार्य श्री हेमविमलसूरीश्वरजी के सदुपदेश का डङ्का बजते ही ऋषि हाना, ऋषि श्रीपति, ऋषि गणपति आदि साधुत्रों ने श्राचार्य श्री के पास अपनी भ्रान्ति दूर कर पुन: दीक्षा स्वीकार की, इन सब साधुओं की संख्या ३७ कही जाती है ।
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