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ऐ० नो० की ऐतिहासिकता
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एक जैनेतर धर्मों के वेद और पुराणों का भी परिशीलन कर अनेक प्रमाण देकर हजारों लाखों वर्ष पूर्व के तीर्थ और मूर्त्तियों का होना सिद्ध कर दिया है, देखो ! खामोजी कृत प्रभुवीर पटावली पृष्ट ५ से १२ तक | स्वाभीजी की इस निष्पक्ष न्याय प्रियता के लिए उन्हें धन्यवाद देना हमारा प्रथम कर्त्तव्य है ।
अस्तु ! आज जो मूर्ति विषयक ऐतिहासिक प्राचीन प्रमाण - स्थानकवासियों को मिले है, वे यदि वा. मो. शाह के हाथ भी लग जाते तो उक्त महाशय ऐसी लीचर दलीलें देकर कर्म बन्धन के पात्र कदापि नहीं बनते । वे प्रमाण आज यत्र तत्र मुद्रित हो चुके हैं, इतने पर भी संतोष न हो, वे मेरी लिखी "मूर्तिपूजा का प्राचीन इतिहास" नामक पुस्तक देख मूर्त्तिपूजा की प्राचीनता के पोषक प्रमाणों को पढ़लें, और अपना अन्तिम निर्णय कर जैन तीर्थङ्करों की मूर्तियों की द्रव्य भाव से पूजा कर अपने आत्म-कल्याण संपादन में संलग्न रहें ।
श्रीमान् शाह ने अपनी ऐतिहासिक नोंध को पूर्णतया लिख उसे समर्पण करने के समय जिस निष्पक्ष मनोवृत्ति का परिचय दिया है उसकी यहाँ पृथक आलोचना करने की कोई आवश्यकता प्रतीत नहीं होती, कारण, शाह की यह दूषित कल्पना स्वयं स्थानकवासी समाज को भी अनुचित एवं असामयिक प्रतीत हुई है, जिससे उन्होंने नोंध का गुजराती से हिन्दी भाषान्तर करते वक्त उस विषय को पुस्तक में से कतई निकाल दिया है । यद्यपि न्यायतः यह ठीक था, परन्तु इससे शाह की निंद्य मनोवृत्ति की तो जरूर भर्त्सना ही हुई है; फिर भी इससे एक लाभ है कि इस कल्पना को लक्ष्य कर अन्यान्य लेखक शाह के विषय में जो अपने
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