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लौंकों के देरासर
ओर अवशिष्ट लौं कागच्छाय पज्यों ने मूर्तिपूजा को ही स्वीकार करलिया जोकि अद्याऽवधि भी लौकागच्छ में विद्यमान है। ___ जहाँ २ लौकागच्छ के उपाश्रय हैं वहाँ२ श्रीवीतराग की मूर्तियों की स्थापना अवश्य है । और कई एक प्रामों में जहाँ लौकागच्छ के यतियों का अभाव है वहाँ के उपाश्रयों को मूत्तिएँ तत्रत्य मन्दिरों में प्रतिष्ठित करदी गई हैं। परन्तु जहाँ जहाँ लौकागच्छ यति हैं वहाँ तो आज भी मूर्तिएँ हैं। जैसे उदाहरणार्थ प्रामो एवं नगरों के नाम यहाँ दिये जाते हैं:___ "बीकानेर, फलोदी, जोधपुर, पाली, सादड़ी, देशनोक, मजल, बड़ोदा, भावनगर, लीबड़ी, पटियाला, फिरोजपुर, अंबाला, भूम, फरीदकोट, लुधियाना, पुगवाड़ा, राहू, टाड़ा, अहीयापुरा, जीरा पदी, गुरुकाजडियाला, जालंधर, मुर्शिदाबाद, बालुचर, मलारकोटला, सरसा, हुसियारपुर, सामरना आदि" ___ उपयुक्त इन प्रामों में तथा और भी अनेक प्रामों नगरों में लोकागच्छीय उपासरों में जैनमूर्तियें जरूर विद्यमान हैं, और इन जैनमूर्तियों के कारण ही आज संसारमें लौकागच्छ का अस्तित्व टिका हुआ है। अन्यथा ढूंढिया लोग कभी के लोकाशाह के नामोनिशान को उठा देते ?
x पृष्ट ९० पर शाह लिखते हैं कि:
"जीवाजी की दीक्षा में एक लाख रुपये खर्च हुआ"
शाह को कोई पूछनेवाला नहीं मिला कि दयाधर्म पालने वालों ने दीक्षा महोत्सव में एक लाख रु. खर्च कर क्या काम किया था ? अगर कहो कि मण्डप बनाया, फूलों से सजावट
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