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ऐ० नों० की ऐतिहासिकता
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सब न हो कर इन से विरुद्ध अर्वाचीन समय में मूर्ति विरुद्ध आन्दोलन की चर्चा ही विशेष है । तथा २००० वर्षों के साहित्य में, इन कल्पित पटावलियों में लिखे कल्पित आचार्यों के नाम का कहीं निर्देश भी नहीं है । फिर हम क्यों न मानें कि ये बिलकुल बनावटी वागजाल मात्र हैं ।
( ४ ) साहित्य की दृष्टि से यदि इन को देखा जाय तो २००० वर्षों में जिन पूर्ववृत्ति जैनाचार्यों ने हजारों प्रन्थों का निर्माण किया था, उनके नामों के विरुद्ध इन पटावलियों में दिये गए कल्पित नामों के आचायों ने कोई भी ग्रंथ निर्माण किया हो ऐसा आज तक भी कहीं से सुनने में नहीं आया, इस दशा में लाचार हो मानना पड़ता है कि ये पटावलियें सोलहों आनें कल्पित एवं झूठी है ।
( ५ ) वास्तु निर्माण विधि से इन पर विचार विनिमय करें तो श्वेताम्बर और दिगम्बर समुदाय के मन्दिर, मूर्त्तिएँ, गुफाएँ, उपाश्रय और धर्मशालाएँ जहाँ आज भारत के कोने २ में मिलती हैं सो ही नहीं किन्तु सुदूर यूरोप आदि विदेशों में भी उनका अस्तित्व अक्षुण्णतया उपलब्ध होता है । वहाँ इन पंजाब आदि की पटावलियों में प्राचीन समय का किसी झोंपड़े का भी प्रमाण नहीं प्राप्त है । तब बाध्य हो मानना पड़ता है कि ये केवल मिथ्यावादियों का ही क्षणिक वाग विमोह है ।
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( ६ ) साधु साध्वियों के लिहाज से यदि इनकी समीक्षा की जाय तो भगवान् महावीर के बाद २००० वर्षों में जैन श्वे० दिगंबरों के हजारों साधु साध्वियों का होना इतिहास सं सिद्ध है, पर पंजाब की पटावली के आचार्यों की नामावली में का
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