Book Title: Shreeman Lonkashah
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Shri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi

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Page 396
________________ - प्रस्तावना क्रिम की सोलहवीं शताब्दी संसार और विशेषतः जैन समाज के लिए भीषण उत्पाद का दुःखद समय था। क्योंकि जिस महान् दुःख का अनुभव बारह वर्षीय दुष्काल एवं चैत्यवासियों के साम्राज्य में नहीं करना पड़ा, उसी का अनुभव सोलहवीं शताब्दी में करना पड़ा । इसका मुख्य कारण यह था कि जैसे दीपक बुझते समय अपने प्रकाश को चतुर्गुण फैला कर तत्क्षण ही सदा के लिए बुम जाता है वैसे ही भगवान की राशि पर बैठे हुए भस्मग्रह ने अपनी स्थिति के अन्तिम समय में जैन समाज को अपनी क्रूरता की एक फटकार दिखलाई, उसी समय महाविकराल एवं कलहकारी धूम्रकेतु नाम का अपर ग्रह श्रीसंघ की राशि पर सवार हुआ जिसका कि स्वभाव उत्पात मचाने का ही है । इधर "असंयति पूजा नामक अच्छेरा" का भी श्रीसंघ पर असर हुआ। बस, इन तीनों अशुभ कारणों के एकत्र मिल जाने से जैन समाज में भेद डालकर असंयमी गृहस्थों ने अपने स्वयं को पुजवाने की पुकार उठाई। इसमें एक ओर तो लौकाशाह गृहस्थ था; और दूसरी और था कडुअाशाह । इन दोनों व्यक्तियों ने जैनधर्म में ऐसा उत्पात मचाया कि तब का बिखरा हुआ जैन समाज आज तक भी सम्यक् रूपेण एकत्रित नहीं हो सका। जैन धर्म को जो हानि इन दोनों गृहस्थों ने पहुँचाई है वह पूर्व में किसी ने नहीं पहुँचाई थी। अतः इन दोनों गृहस्थों का पूर्व में कुछ संक्षिप्त परिचय करा देना अति आवश्यक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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