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कहुआधाह
.३२२ है कि कलिकाल के काले प्रभाव से जैनशासन को उन्मूलन करनेवाले कैसे २ अज्ञ लोग हो गुजरे हैं-यह सर्व साधारण जान जाय। . लोकाशाह दशाश्रीमाली बनिया था; आपका जन्म वि० सं० १४८२ से लींवड़ी (काठियावाड़) शहर में हुआ था। इधर कडुआशाह ओसवाल था । इनका जन्म नाडोलाई (मारवाड़) गाँव में वि० सं० १४९५ को हुआथा। ये दोनों महापुरुष (1) जब किसी कारणवश अहमदाबाद को गये, और वहाँ जैन यतियों द्वारा इनका कुछ अपमान हुआ तो इन्होंने अपने नाम से नया मत निकाला । लौकाशाह ने अपनी २७ वर्ष की वय अर्थात् सं० १५०८ में, तब कडुआशाह ने अपनी २९ वर्ष की वय अर्थात् सं० १५२४ में यह घोषणा की कि इस समय जैनों में कोई सच्चा साधु है ही नहीं, और न कोई ऐसा साधु शरीर हो है जो जैनागमों में प्रतिपादित साधु आचार को पाल सकें । इत्यादिः- उस समय सात करोड़ जैन एवं हजारों साधु तथा सैकड़ों विद्वान् आचार्य विद्यमान थे । यदि ये दोनों व्यक्ति किसी जैन विद्वान् के पास जाकर श्री भगवतीसूत्र २० वा शतक सुनकर समझ लेते तो यह दुःसाहस कदापि नहीं करते । क्योंकि भगवान महावीर ने स्वयं श्रीमुखसे यह फरमाया है कि चतुर्विध संघ रूपी मेरा शासन पंचम पारा में २१००० वर्षों तक अविच्छिन्नरुप से चलता रहेगा । फिर दो हजार २००० वर्षों में ही हजारों साधु एवं सैकड़ों आचार्यों के होते हुए भी साधु संस्था की नास्ति बतलाना अज्ञानता के सिवाय और क्या है ? . : .. यदि कोई सजन यह प्रश्न करें कि कडुवाशाह के समय
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