Book Title: Shreeman Lonkashah
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Shri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi

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Page 409
________________ कामत पटावलि ९३-कुलेर पकान आदि बासी न रखना। ९४-मार्ग में स्त्री के साथ बातें न करना। ९५-पांचरंगी वस्त्र न पहिनना । ९६-स्त्रियों के मुण्ड में नहीं जाना। ९७-गान तान गाना सुनाना नहीं । ९८-लोकविरुद्ध आचरण नहीं करना। ९९- किसी के घर जाना हो तो पहिले खूखार आदि संकेत करके जाना । १००-इत्यादि दूसरे बोल भी बहुत जानना । १०१-तथा शील पालने संबन्धी पुरुषों के १०४ बोल तथा स्त्रियों के शील पालने के विषय में १०३ बोल हैं वे सब अन्यत्र ग्रन्थों से जानना । कडुअाशाह ने बहुत लोगों को संबरी बनाया जैसे कि:शाह खीमा, तेजा, करमसी, रांणा, करमण, संबसी, पुंजा, धींगा वीरा, देपाल, भीरपाल, धीरु, तांबा सिंधर, कव सबगण, लुणा, मांगा, जसवंत, डाह्या, वेला, जीवा, पटेल, हासां, पसाया, रामा, करणबधा इत्यादि, तथा पाटण, राजनगर, थराद, राधनपुर, खंभात, जूनागढ प्रमुख शहरों में बहुत से संबरी हुए । इसका अतिशय विस्तार बड़ी पटावली से देखना ।* स्था साधु मणिलालजी ने अपनी प्रभुवीर पटावली नामक पुस्तक के पृष्ठ २१५ पर कडुआ मत का समय वि० सं० १५६२ का लिखा है यह गलत है और इस मत की आदि में साधु होना लिखा यह भी भूल है कारण संवरी श्रावक कल्याणजी को मापने बड़े भारी विद्वान माना है धर्मसिंहजी ने इनके पास ज्ञानाभ्यास किया है उसी कल्याणजी की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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