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कबुआमत पटावलि ५२-दर्द हो जाय तो तीन दिन तक दवा नहीं करना बाद
अच्छा न हो तो उचित उपाय करें । ५३-त्रियों के साथ एकान्त में बातें न करना। ५४-नौवाड़ ब्रह्मचर्यव्रत पालन करना । ५५-मास पर्यन्त एक दिशा रखना। ५६-खी का एकान्त संगठा वरजना । ५७-केश कषाय की उदीरणा न कराना। ५८-कषाय उत्पन्न होवे तब विगई का त्याग करना । ५९-किसी पर अभ्याख्यान न देना । ६०-किसी की निन्दा न करना । ६१-तैल आदि सुगन्ध पदों का विलेपन न करना । ६२-नित्य तेरह द्रव्य से ज्यादा न लगाना । ६३-पान सुपारी मुखवास न करना । ६४-बहुमूल्य वख न लेना और न भोगवना । ६५-रेशमी वस्त्र न लेना और न पहनना । '६६-तैल आदि की मालिश कर स्नान न करना । ६७-स्वयं रसवती ( रसोई) न पकाना । ६८-हरिकाय (अपक) न खाना । ६९-चौमासा में खजूर आदि न लेना। ७०-त्रियों को सुनाते हुए राग ताल न करना। ७१-शरीर पर जेवर नहीं पहनना। ७२-दो पुरुष साथ एक शय्या में न सोना । ७३-अकेली त्रियों को न पढ़ाना । ७४-जहां स्त्री सोवे वहाँ नहीं सोना ।
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