Book Title: Shreeman Lonkashah
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Shri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi

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Page 402
________________ ३२७ कडुआमत नियमावली २-श्रावक की प्रतिष्ठा'-वन्दनीक सममना । ३-पूर्णिमा की पक्खी और चतुर्थी का पर्युषण करना। ४-मुँहपत्ती चरवला हाथ में रखना - ५-बहुधा (बहुत वार) सामायिक भी करना । ६-पर्व सिवाय भी पौषध करना । ७-विद्वल' टालना (कच्चा दही, छास में चणा माठ, मूगादि का बना पदार्थ कच्चा या पक्का डालने से असंख्य जीवो. त्पत्ति होती है)। ८-माला अरोपण नहीं मानना। ...१ कडुआशाह ने कई एक प्रतिष्ठाए भी कराई थी, इसलिए यह नियम बनाना पड़ा हो कि श्रावक की कराई प्रतिष्ठा भी वन्दनीय समझी जानी चाहिए! २ शास्त्रीय विधानाऽनुसार पूर्णिमा की पक्खी तब आचार्यों को मान देने को चतुर्थी का पर्युषण भी स्वीकार किया। इससे ज्ञात होता है कि कडभाशाह को गच्छ का आग्रह नहीं था। . ३ कडुभाशाह जो आँचलगच्छ का श्रावक होने पर भी आँचलगच्छ की मान्यता जो शावक को चरवला मुंहपत्ति नहीं रखनी चाहिये यह ठीक न समझा कर यह नियम बनाया मालूम होता है । ४ शायद लौकाशाह ने सामायिक को भी अस्वीकार किया था, इसी लिए कडआशाह को यह नियम बनाना पड़ा हो। १५ लौकागाह पौषध को भी नहीं मानता था, इसीलिए कडुआशाह ने पर्व के सिवाय भी किसी दिन पौषध व्रत करने का यह नियम बनाया हो। . ....: ६ लौंकामत वाले विद्वल नहीं टालते थे, अतः कडुआशाह को यह नियम भी बनाना पड़ा हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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