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( ३१६ ) (२) धर्मसिंह पर दरियाखान पीर को प्रभाव पड़ा था। तभी तो वे शिवजी जैसे प्रभाविक गुरु की निंदा कर उनसे अलग हुए थे।
(३) लवजी का जीवन चरित्र पढ़ने से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि वे मुस्लिम रङ्गरेज के यहाँ से लड्डू ले खाया करते थे, और इसी कारण सोमजीऋषि की अकाल मृत्यु हुई थी, बिना अनार्य संस्कृति के प्रभाव के क्या कोई यवन के घर का लड्डू ले सकता है ? नहीं।
(४) लवजी के अनुयायी बुरानपुर के श्रावक जब, दिल्ली गए; और उन्हें दिल्ली में से बाहिर निकाल दिया, तो वे अपनो अधमता के कारण जन या हिन्दू घरों में स्थान नहीं पासके, तब वे स्वेच्छ जा कर मुसलमानों के कब्रिस्तान में ठहरे। यह भी उनका प्रच्छन्न यवन संसर्ग का ही द्योतक है।
(५) आज कल भो इस मत के अनुयायी लोग मुसलमानों के 'ताजिया' के नीचे से अपने बाल बच्चों को निकालते हैं और ऐसा कर उनकी दीर्घायु कामना करते हैं तथा यवनों के बनाए ताबीज आदि भी अपने पास रखते या गलों में बाँधते हैं।
उपरोक्त वर्णन के बाद अब हम शाह ने जिन जैनाचार्यों के चमत्कारों की हँसी उड़ाई है, उन्हीं चमत्कारों को अपने माने हुए महात्माओं के साथ जोड़ उनकी विशेषता बताई है । उसे बताते हैं उदाहरणार्थ देखिये:
(१) जैनाचार्य जिनचन्द्रसूरि को मणिधर जिनचंद्रसूरि का उल्लेख देख शाह ने अपनी ऐतिहासिक नोंध पृ. ९७ में
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