Book Title: Shreeman Lonkashah
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Shri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi

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Page 387
________________ ( ३१४ ) (५) स्वामी मूलचन्द्रजी स्था० मत त्याग कर आए तो उनको भी गणि श्रीमणि विजयजी ने पुन: दीक्षित किया। इसी प्रकार स्वामी वृद्धिचंद्रजी और नीतिविजयजी आदि को भी पुनः दीक्षा दोगई थी। (६) स्वामी आत्मारामजी अपने २० शिष्यों के साथ स्थानकवासी मत का परित्याग कर संवेगीपक्ष में पाए तो पूज्य गणिवर बुद्धिविजयजी महाराज ने उन सबको पुनः दीक्षा दी। (७) स्वामी रत्नचंदजी स्था० समुदाय को त्याग कर सनातन जैन धर्म में आये तो उन्हें जैनाचार्य विजयधर्म सूरिजी ने पुन: दीक्षा दी थी। (८) स्वामी अजीत आदि ६ साधू जब स्था० मत को तिलाञ्जलि दे पुनः स. जैनधर्म में आए तब उन्हें आचार्य बुद्धि. सागरसूरि ने सबके साथ दीक्षित किया। (९) यदि स्थानकवासी मत का परित्याग कर पुन: जैनधर्म की दीक्षा लेने वाले साधुओं की नामावली मात्र भी लिखी जाय तब तो एक खासा प्रन्थ बन सकता है। स्थानकवासी मत से वापिस संवेगपक्ष में दीक्षित हुए साधु परिवार की संख्या इस समय भी प्रभु कृपा से ५०० के करीब है।। (१०) इस प्रन्थ का लेखक भी पूर्व में स्थानकवासी मत का साधु ही था, पर जब उस मत का त्याग कर आया और परमयोगिराज पूज्य मुनिश्री रत्नविजयजी महाराज के पास पुनः दीक्षित हुआ । क्योंकि यह खास भगवान महावीर प्रभु का शासन है और महावीर शासन की मर्यादा का पालन करना महावीरकी संतान का परम कर्तव्य है। जो भगवान् महावीर के शासन की Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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