Book Title: Shreeman Lonkashah
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Shri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi

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Page 392
________________ ( ३१९) (७ ) जैसे जैनाचार्यों को बादशाह की ओर से पटे, पर बाने, पालखी, छत्र चामर आदि मिले हैं उसकी तो शाह ने निन्दा की है किन्तु अपनी ओर स्वामी शिवजी के लिए पूर्वोक्त बहुमान मिलने का बड़े आदर से उल्लेख किया है। इत्यादि कई एक ऐसी बाते हैं जिन्हें शाह ने एक पक्षवालों के लिए तो निन्दाऽऽत्मक और अपने पक्ष के लिये प्रशंसाऽऽत्मक लिखा है। परन्तु ऐसे पक्षपाती, दृष्टि रागि, और मन गढन्त घटनाएँ घड़ने वाले शाह पर सुज्ञ समाज को कैसी श्रद्धा रह सकती है इसे विद्वद्वर्ग स्वयं सोच सकते हैं। हाँ, यह जरूर है जिन्होंने अपनी बुद्धि का दिवाला निकाल कर्त्तव्याऽकर्त्तव्य विवेक शून्य द्धि का आदर किया है, वे क्षण भर के लिए (ऐ० नों० जैसी पुस्तकों) भले ही आदर देद किन्तु जब असलियत का पता हो जायगा तब तो उनको स्वयं ही छोड़ना पड़ेगा । वा० मो० शाह ने यह पुस्तक लिख अपने समय, शक्ति, बुद्धि और धन का हमारी समझ में तो दुरुपयोग ही किया है। परस्पर में लड़ाने भिड़ाने वाली मिथ्या बातों के प्रकाशन से आज तक भी जगत् में कोई यश का पात्र न तो हुआ है और न होने की सभावना है खैर ! इस लेख को अब हम विशेष न बढ़ा सब की कल्याण कामना करते हुए शासनदेव से यही प्रार्थना करते हैं कि सबको सद्बुद्धि प्रदान करे। श्रों शान्तिः शान्तिः !! शान्तिः !!! ॥ इति ॥ ऐतिहासिक नोंध की ऐतिहासिकता Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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