Book Title: Shreeman Lonkashah
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Shri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi

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Page 390
________________ ( ३१७ ) सिंधराजजी को भी लिख दिया कि आपके मस्तक में मणि थी। जब देहान्त होने पर उनका दाह कर्म हुआ तब मस्तक से उछल कर मणि जमुना में गिर गई। परन्तु यह बात स्वामी मणिलालजी को शायद अनुचित जान पड़ी हो। इससे उन्होंने अपनी प्रभुवीर पटावली में इसे स्थान नहीं दिया है। साथ ही मणिलालजी को पटावली पढ़ने से यह भी ज्ञात होता है कि हमारी तरह स्वामोजी को भी इसको प्रमाणिकता में सन्देह है क्योंकि उनका भी विश्वास है कि शाह की नोंध ऐसी बातों में सिवाय "गप्प" के विशेष तथ्य हो ही क्या सकता है । शाह प्रमाणों से तो उतने ही दूर भागे हैं जैसे कोड़ा देख घोड़ा भागा करता है। (२)शाह ने नोंध के ९३ पृष्टपर लिखा है कि "एक तीजाबाई श्राविका के कोई पुत्र नहीं होता था अतः वह एक बार लुपकाचार्य रत्नपिंहजी की वन्दना करने को आई, और उन आचार्य के कहने मात्र से तीजांबाई के पाँच पुत्र हुए। परन्तु तेरह पंथियों से यदि पूछा जाय कि वे पांच पुत्र भविष्य में प्रारम्भ सारंभ करेंगे और विषय वासना भोगेंगे उसका पाप किसे लगेगा ? शायद इस निमित्त भाषण समय मुँह बन्धा हुआ होगा। (३) बुरानपुर के लवजी के श्रावक दिल्ली गए, वहाँ काजी के पुत्र को सर्प काटा, उसे कब्रिस्तान में लाऐ। वहाँ बुरानपुर के शावक ठहरे हुए थे, उन्होंने 'नवकार मन्त्र' से काजी के पुत्र का जहर उतार दिया, और काजी ने उन श्रावकों को भोजन खिलाया तथा उनका सब दुःख दूर कर दिया। फिर भी वे श्रावक स्रोमजीर्षि का जहर क्यों नहीं उतारा यह समझ में नहीं आता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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